खोया पाया
पुँछकर देखा खुद से क्या खोया क्या पाया हमने
चंद चाँदी के सिक्के पाये है पर मुस्कान खोया हमने
बेचकर शकुन दिल की शहर से अदावत खरीद लाया
मखमली बिस्तर तो है पर कई रातो से न सोया हमने
आधुनिकता के आबोहवा मे भुल गये है अपना संस्कृती
बेशर्मी का जामा पहनकर लिबास अपना खोया हमने
युवा पीढ़ी आजकल के पश्चिम सभ्यता मे रंगे हुये है
अब क्या शोर करे रौशन पाया है वही जो बोया हमने
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