बाज़ारी आँधी में
जीवन-मूल्य हुए तिनके !
भीतर गहराता तम
दीमकज़दा चौखटों पर
लटके परदे चमचम
संवेदन-स्वर क्षीण-क्षीणतर
खनक रहे सिक्के !
मर्कट-नाच नचाता हर दिन
लालच घाघ मदारी
मत्सर ,मोह ,कपट ,छल को
कहते अब दुनियादारी
पत्थर फेंक रहे परघर वे
शीशमहल जिनके !
भोगों का भूगोल रच रहे
नव कुबेर मिलकर
बोल रहा जादू विज्ञापन का
सिर पर चढ़कर
भीड़ खूब है वहाँ ,जहाँ
बिकते सपने दिन के !
जीवन-मूल्य हुए तिनके !
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