धरा है, जिनकी रचना, उन्हीं को, केवट रीझा रहा है।
जिनकी करूँ ना, गंगा मैया, उन्हीं का पद रज, चुरा रहा है
इंग्लिश अपनी राम की देन,
हिंदी पूरी, अनुशासन हीं।
संस्कृत में, सह सा, तौ ते, ते ता, का भरम।
बाँकि, कहाँ, लगाऊँ मन।
मैथिली, बज्रिका वाली,
अंगि, मगहि, सब खाली।
दक्षिण पाणी, उत्तर पहाड़,
पुरवैया, पछिया, बहे बयार।
छठि, मैया, सुनू मोरे, पुकार,
तम मन में, सब रहे, अन्हार।
पुरइन चाहें, केला के पात,
मुकुन्द, के कुछो न बुझात।।
दही चुरा, की सतुआ, प्रभात,
सोहारी, तरकारी, निमकी के साथ,
तनि नून गर, माखनआ मधु गरम,
भेंट अँतिम, में, जे रउआ, मरम,
बस, हमारा निनिया, बिन लोरी, अतः।।
बिहारी, के और न कुछौ, बुझात।
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