कुछ तो रोक रहा है मेरे दीवाने को,
वरना कितना खाली है मैखाना उसे पिलाने को ll
उसके पैरों में पड़ी हैं ज़माने की बेड़ियां,
वरना कितना खाली है, गुलिस्ता उसे दिखाने को ll
तारा टूटा है अब उसकी दुआ होगी कबूल,
वरना कितना चाहा है रहनुमा उसे बनाने को ll
थोड़ा सा ही सही मगर मुकम्मल है मुझमें वो,
वरना कौन होता है , आईना मुझे दिखाने को ll
कितना शोर सा है अब तन्हाइयों का “गुमशुद”
वरना कितना जाली है मौसम उसे भूलाने को ll
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