विगत वर्षों में खोए हमने ,
अपने बहुत से मित्र ।
रह गए उनसे रिश्ते फीके ,
जो थे हृदय में बैठे नीके ।
छुपाए नहीं छुपती प्रेम और शत्रुता ,
बता देती है उसे हृदय की निर्मलता ।।
समक्ष ला खड़ा करता है
समय उसे अपने आप ,
कौन है मित्र ?
और कौन आस्तीन का सांप !
बीते समय और परिस्थितियों से
सीखा और यह पाया ,
झूठे रिश्तों में हमने अपना,
कीमती समय गवाया ।।
माता-पिता और ईश्वर के अतिरिक्त ,
नहीं कोई यहां अपना ।
इनके अतिरिक्त बाकी सब है ,
एक झूठा सपना ।।
बीते समय से सीखी है हमने ,
बस एक जरूरी बात ।
कुछ खोया कुछ पाया हमने ,
और बहुत कुछ है अब भी साथ ।।
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