तुम लिख रहे हो, न उस किसान की महानता,
जिसके खेत की फसल ,
आप तक पहुंचते पहुंचते
जाति परिवर्तन कर लेती है ,
अपना ईमान धर्म,सब बेंच देती है l
तुम लिख रहे हो, कुछ कुछ कह रहे हो न,
उस किसान के बारे में,
जिसके खेत की फ़सल,
उसके पैरों के छालों के,
सही होने से पहले ही बिक जाती हैं l
तुम दे रहे हो न बधाई,
उस अनपढ़ किसान को ,
जिसकी फ़सल के वास्ते,
लिए गये उधार के कारण,
पगड़ी भी गिरवी हो जाती है ll
तुमको दिखेगा,
उसकी लहलहाती, मुस्कुराती फसलों में,
उसका और उसके परिवार का
दमकता सा चेहरा,
जिसकी फ़सल ,
उसके बनियान के छेदों से भी ,
कम अंकों के पैसों में बिक जाती है ll
ठंड के मौसम में,
दफ्तर निकलने से पहले,
डाइनिंग टेबल पर बैठ ,
गरमा गरम पराठों को खाते हुए ,
टेलीविजन पर,
किसानों की भलाई के लिए
सरकारी योजनाओं पर नज़र दौड़ाते हुए
हल्के हल्के से मुस्कुराते हुए,
खुश हो रहे होगे l
किसानों के पक्के घर,
मासिक पेंशन,
सस्ती खाद,
उनके वास्ते
शिक्षा और रोज़गार के इश्तहार,
सोच किसानों के नई हालात,
दंग हो रहे होगे l
लेकिन तुम नहीं देख पा रहे होगे,
कागज़ पर किसानी करते हुए किसान को ,
किसान दिवस के बधाई संदेश भेजते वक्त ,
कि
वह असल किसान पूस की ठंड वाली रात में ,
खेत में अपनी फसलों में उगे,
हीरे जवाहरातों को बचाते हुए,
ख्वाहिशों ज़िम्मेदारियों की लिस्ट को,
आसमान के तारों का सहारा ले गिनते हुए ,
धीरे धीरे शांत होता जा रहा है ,
धीरे धीरे शांत होता जा रहा है l