कारवां
पल दो पल का कारवां पल दो पल का ज्ञान
मयकदे मे चोर पुलिस सब है इक समान
आता वाता कुछ नही दे रहे गीता ज्ञान
इन्सानो ने बेच दी आज यँहा ईमान
सियासत के बाजार मे सबके बिगडे बोल
कुर्ता खादी का पहन कर भोग रहे है भोग
मास मदिरा खा पीकर मस्त मलंग है लोग
प्रकृृति बिरूद्ध खा पीकर पाल रहे है रोग
मानवता मिटने लगी है घर घर रावण आज
ओढ़कर चुनरिया प्यार की लुट रहे है लाज
श्रद्धा का बिश्वास ही बना लुटोरो का हथियार
फैैसला कोई भी करो बेटिया करो सोच बिचार
हिन्दुस्तान देेख रहा है खुुब शिकारी का सब खेल
माँ बाप के आशिर्वाद बिना हो सुरक्षित कैसे मेल
अंधेरी नगरी चौपट राजा नगरी मे जब होए
खा खा कर को॓ई मरे कोई भुखे पेट ही सोए
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