कभी एहसास लफ़्जों में कभी कुछ गीत शब्दों में 

कभी एहसास लफ़्जों में कभी कुछ गीत शब्दों में 

कभी बेज़ार सी बातें

कभी अनुसार की बातें

कभी कुछ याद सी बहती कभी बेकार सी बातें

कभी एहसास लफ़्जों में कभी कुछ गीत शब्दों में

कभी क़तरा मोहब्बत का कभी आबशार सी बातें

ये कैसी बात बातों में जहाँ कुछ जख़्म मिलते हैं

नहीं है धार शब्दों में मगर तलवार सी बातें

कभी तस्वीर यादों की कभी यादों पे कोहरे सी

ख़लाओं की बुलंदी तक किसी औज़़ार सी बातें

फ़िसल कर रूह से निकली कभी अल्फ़ाज़ में ढलती

कहीं पर नूर का कतरा कभी आज़ार सी बातें

कभी मायूस लम्हों में कोई दस्तक पुरानी सी

कभी एहसास के सिलवट कभी हथियार सी बातें

कभी यह झूठ जिस्मो का कभी यह रूह का रिश्ता

कभी तहज़ीब पोशीदा कभी बाजार सी बातें

ये बातें तो रवायत हैं जो सदियों तक जिया मैंने

न अब इंकार की हद है ना ही इक़रार की बातें

(शब्दार्थ-आबशार – झरना, निर्झर, ख़लाओं -अंतरिक्ष)

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रचनाकार

Author

  • डॉ अंजू सिंह परिहार

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