एक सुनहरी शाम का अँंचल आंखों में लहराता है
यादों में भी तन्हाई में कोई मुझे बुलाता है
एक तसव्वुर एक तिश्नगी एक दुआ है आंखों में
माज़ी के औराक़ सुनहरे क्यों कोई पलटाता है
बहुत देर तक सब्ज़परी की यादों से लबरेज रहा
बेज़ार परिंदा लम्हों का क्यों पल पल ख़्वाब सजाता है
कागज के पैकर है हर सू आँखों में बेख्वाबी है
मौसम दिल का नम हो जाए वो तस्वीर दिखाता है
हद से दर्द बढ़ेगा तो ये यार दवा हो जाएगा
झूठी झूठी बातें मुझको क्यों कोई समझाता है
प्यासा दरिया आँख पशेमा मुद्दत से बेज़ारी है
दिल लेकिन शबनम के किस्से मुझको रोज़ सुनाता है
अब तक शायद मरी नहीं उम्मीद किसी की आँखों में
वो अपनी दीवारों पर कागज के फूल उगाता है
दानिशवर दुनिया की हालत कह दूं पर अल्फाज नहीं
इस बेबस हालत पर मेरी कोई मुस्काता है
सारा दर्द रक़म होकर भी गीतों का सामान हुआ
मुद्दत से कुछ गीत अनमने क्यो कोई लिखवाता है