एक मुट्ठी धूप लाया हूँ

मैं एक मुट्ठी धूप लाया हूँ,
चलो इस सर्द लम्हों में, थोड़ी तुम रख लो l

मगर, तुम संभाल नहीं पाओगे,
इसकी तपिश से झुलस जाओगे l

क्योंकि ये धूप,
किसी टूटी हुई झोपड़ी के नीचे ,
अध नंगे इन्सान के डूबते सूरज की है l

वही सूरज जिसके होने से,
वह पिघलकर,
चारों खानें चित हो जाता है l

वही सूरज जिसके न होने से ,
वह जम जाता है ll

बहुत मुश्किल से,
सूरज के होने न होने के बीच से,
कांपती, पसीने से लथपथ,
भूख प्यास की अतड़ियों से निकली चीख से,
उस फूहड़,गवार, शरीर और समाज के बोझ से ,
बचते बचाते,
नज़रे चुराते,
लेकर आया हूँ ,
मैं एक मुट्ठी धूप लाया हूँ ll

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रचनाकार

Author

  • आलोक सिंह "गुमशुदा"

    शिक्षा- M.Tech. (गोल्ड मेडलिस्ट) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कुरुक्षेत्र, हरियाणा l संप्रति-आकाशवाणी रायबरेली (उ.प्र.) में अभियांत्रिकी सहायक के पद पर कार्यरत l साहित्यिक गतिविधियाँ- कई कवितायें व कहानियाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं कैसे मशाल , रेलनामा , काव्य दर्पण , साहित्यिक अर्पण ,फुलवारी ,नारी प्रकाशन , अर्णव प्रकाशन इत्यादि में प्रकाशित l कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एकल और साझा काव्यपाठ l आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी लाइव काव्यपाठ l सम्मान- नराकास शिमला द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व सम्मानित l अर्णव प्रकाशन से "काव्य श्री अर्णव सम्मान" से सम्मानित l विशेष- "साहित्यिक हस्ताक्षर" चैनल के नाम से यूट्यूब चैनल , जिसमें स्वरचित कविताएँ, और विभिन्न रचनाकारों की रचनाओं पर आधारित "कलम के सिपाही" जैसे कार्यक्रम और साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है l पत्राचार का पता- आलोक सिंह C- 20 दूरदर्शन कॉलोनी विराजखण्ड लखनऊ, उत्तर प्रदेश Copyright@आलोक सिंह "गुमशुदा"/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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