धूप में वापिस तपिश आने लगी
फिर हवाओं में घुली ख़ुशबू !
पतझरी मनहूसियत के दिन गये
हर नयन में उग रहे सपने नये
ठूँठ में भी पल्लवन की लालसा
अजब है ऋतुराज का जादू !
रंग , रस , सिंगार के दिन आ गये
मान के, मनुहार के दिन आ गये
आ गये दिन प्रतीक्षित अभिसार के
छलकता अनुराग है हर सू !
शूल सहमे-से खिले इतने सुमन
चतुर्दिक हँसता हुआ है हरापन
उठ रहा है स्वर पिकी का आगगन
लगीं सुधियाँ बदलने पहलू !
फिर हवाओं में घुली ख़ुशबू! !
देखे जाने की संख्या : 444