आवाज उठाओ

एक आवाज
पुकार बन उभरी
तो हजारों कदम
कारवां बन जुड़ गए
आग्रह शांत और विनीत था
तो क़दमों का शोर
सुरीली लय बन गया
नारों में सच की आत्मा थी तो
घनघोर घोष भी हृदयंगम हो गए
एक गीत जैसे छंदों को गूंथता
बढ़ता है तन्मयता के अंजाम तक
वैसे ही पावन संघर्ष
धूल का कोहराम नही
कुमकुम बनाते चलते हैं
विध्वंसक आग नहीं होकर भी
सधी हुई हिम इतिहास रचती है
इतिहास को खून नही चाहिए सदा
बदलते हैं इतिहास शांति की हूक से भी
क्रांति विप्लव की
संगिनी नही होती सदा
अच्छे लोग आगे है तो
क्रांतियाँ राम चरित मानस हो जाती है
अर्श से बिजलियाँ कौंधती है
खामोश तेजस जब इरादा ठान लेता है
शांति ने पूजाओं को फलित किया हैं
जब जब निगाह उठी हैं पाकीजगी की
आसमान वाला मजबूर हो ज़मी पर आया हैं

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रचनाकार

Author

  • त्रिभुवनेश भारद्वाज "शिवांश"

    त्रिभुवनेश भारद्वाज रतलाम मप्र के मूल निवासी आध्यात्मिक और साहित्यिक विषयों में निरन्तर लेखन।स्तरीय काव्य में अभिरुचि।जिंदगी इधर है शीर्षक से अब तक 5000 कॉलम डिजिटल प्लेट फॉर्म के लिए लिखे।

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