छिपा छिपा सा राज प्रकृति का
जो देता संदेश
सूर्यास्त बता रहा है मुझे
अंधेरे के आगोश में
मिलता हैं नित्य गले अपने अंधेरे से
डूबती उम्र के बहाव को
शरीर के अस्त होने की कहानी
हो जाना है विलय एक दिन
चले जाना हैं मृत्यु के आगोश में “मैं” को
छिपा छिपा सा राज प्रकृति का
जो देता संदेश
प्रकृति के आगोश मे समा जाने की बानी
नए उदय के लिए नव जीवन लिए
नवोदित चमक लिए उम्र घटते हुए
फिर से एक नई उम्र में प्रवेश के आगोश में
जाना होगा वही वापिस पुनः
नव शरीर नव उम्र संग आने को
लग्न है चाह हैं आत्मा को मृत्यु से मिलन की
पुनः गले लग वापिस आने को
छिपा छिपा सा राज प्रकृति का
जो देता संदेश
आ चल मंजु पुनः प्रकृति की और
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