हर शख़्स है तना हुआ कमान की तरह
अपने ही पेश आ रहे अनजान की तरह।
जिस घर को सजाने में मैं ख़ुद बिखर गया
उसमें पड़ा हूँ फालतू सामान की तरह ।
जुगनू मिले जो हक़ में बाख़ुशी कबूल है
हरगिज न चाँद चाहिए एहसान की तरह।
ऐसे समय से किस तरह कोई सुलह करे
जब चोर ही डपटते हों दरबान की तरह।
माया है मुखौटों की आँखें थकीं-थकीं
शैतान नज़र आता है श्रीमान् की तरह।
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