आज भी वही मुलाकाते,बातें,वादे,इरादे
वही आंतरिक अनुभूति की सिहरन सी
मुझे स्वयं के भीतर कराती अहसास
कि काश न किया होता स्वयं से समझौता
आज भी वही अनुभूति..!
मेरे शांत मन को उद्दवेलित करती
मानों समुद्र में कुछ हलचल सी हुई हो
सभी बातें,वादे,इरादे मानों सामने आकर
खड़े हो जाते हो मेरे अनेको प्रश्नों के साथ
आज भी वही अनुभूति..!
आज भी एकाग्र नही कर पा रही हूँ स्वयं को
गहरे गड़ी यादों की जड़े मानों अतल तक हो
अंतस्तल से ही मिल रहा यादों की जड़ो को स्वाद
न जाने कभी भी यादों का घाव हरा हो उठता हैं
आज भी वही अनुभूति..!
मेरी प्रीत को नही देख पाया गहरे तक शायद
नही हुई उसकी पहुंच बहुत गहराई तक
एक बार खरोंच कर तो देखता मेरे मन को
शायद स्वयं को ही पाता उन खरोंचों के नीचे भी
आज भी वही अनुभूति..!
आज भी ठहरी हुई यादें इंतजार में
मानों संग किसी यात्रा को तैयार
यादों के सफर को सार्थकता देते हुए
सुखद सी यादों की यात्रा के सफर पर बढ़ने को
आज भी वही अनुभूति..!