सुनते हैं
कथाओं में कभी स्वर्ण युग थे
जब चेतनाओं पर
कोहरा न छाया था गुनाह का
जमीन ज्यादा और
लोग कम थे
खुला आकाश बेफिक्र होकर देख सकते थे
कोई भी वन वितानों में निश्चिन्त
सैर कर सकते थे
कोई भी कहीं भी बैखोफ आ जा सकता था
जंगलो में भी अदब का साम्राज्य था
पशु भी आदमी का लिहाज करते थे
नारियों को स्वाधीनता का वरदान था
पहरे नहीं थे
न थी वर्जनाएं क्या पहनो
कब निकलो और कहाँ जाओ न जाओ
ताने जिल्लत जुल्मते बने ही नहीं थे
बना था तो बस मनुष्यगत सम्मान
निष्पाप हवाओं का दौर था कोई
जब पढ़ सकती थी कोई सुन्दरी
डूब कर किताब किसी वीराने में अकेले बैठ कर
आज का युग हैं
अपने घरों में बंद सांकलो में भी
नारियों को डर लगता हैं
समय बदला काला युग आया
जिसने अस्मत को लूटने से पहले
पावन से भरोसे को खाया
अब कोई नारी आंगन में
निर्भीक सोने का साहस कर ले
तो खबर बन जाती है
सामूहिक,,,,,,,,हुआ
एक बच्ची पेड़ पर झोली में
बेफिक्र लटकी सो रही थी
मजदूर माँ उसे बार बार देख कर
रो रही थी
निगाह हटने भर से दुर्घटना की आशंका
क्या गरीब क्या अमीर
सर्वत्र शंका कुशंका
सामाजिकता दुष्कृत्य की शिकार हुई
क्या दौर आया साहिब
इंसानियत बीमार हुई
बच्चियां सिख रही है
बेड टच क्या होता है
चाकलेट भी किसी से न लेना
कहते हुए पिता रोता है
जिनको सचमुच बच्चों से प्यार है
वो भी सकते हैं
गुड़िया बोल रही है
डोंट टच मी
बट बेटा इट्स गुड टच
नो नो नॉट अलाउ एनी टच
सामाजिक चेहरा बदल गया
दो चार घटनाओं से
रिश्तें सहम गए
नित नई वर्जनाओं से
रचनाकार
Author
त्रिभुवनेश भारद्वाज रतलाम मप्र के मूल निवासी आध्यात्मिक और साहित्यिक विषयों में निरन्तर लेखन।स्तरीय काव्य में अभिरुचि।जिंदगी इधर है शीर्षक से अब तक 5000 कॉलम डिजिटल प्लेट फॉर्म के लिए लिखे।