वो वक्त जब
एक दीर्घ यात्रा
के बाद
निस्तब्ध दिशा पश्चिम में
अस्ताचल की और
जाते सूरज की
शफक भाव विभोर करती हैं
आँख से आत्मा तक
एक वन्दनीय छवि उकरआती हैं
सौम्यता से विशाल आकाश को छूना
और ज्वालामयी तेजस होकर भी
प्रस्थान की सीढियाँ उतरता हैं
निर्मलता से पग पग
क्योंकि अस्त में उतरने से पहले भी
सूरज मुस्कुराता हैं
गाता हैं
लिखता सुनहरी कलम से
शान से जीने और
गौरव से प्रस्थान के गीत
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