पंख रहते हुए भी बेपर हुए
परिन्दे जो क़फ़स के अन्दर हुए !
पत्थरों को बना डाला देवता
पुजारी जैसे स्वयं पत्थर हुए !
कह रहा था गिद्ध चिंतित बाज से
‘ लोग देखो चंचुधर बेहतर हुए ! ‘
वफ़ा के वादे, मुहब्बत के क़रार
सधा मतलब और छू-मंतर हुए !
खुद न जिनको रहगुजर मालूम है
इन दिनों वे ही बड़े रहबर हुए !
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