
नास्तिकता का उदय
नास्तिकता यू ही नही उभरती हैजब अंग–अंग छलती हैजब अंग–अंग तड़पती हैजब अन्याय के आगे आसमान असहाय हो जाता है !जब निश्चल पवित्र मन परईश्वर

नास्तिकता यू ही नही उभरती हैजब अंग–अंग छलती हैजब अंग–अंग तड़पती हैजब अन्याय के आगे आसमान असहाय हो जाता है !जब निश्चल पवित्र मन परईश्वर

सावन मा धरती महरानी सजि धजि छम छम बाजत हीं राति गगन जब उवै अंजोरिया दुलहिन जयिसै लागत हीं कुलि वरि घनी हरियरी छायी नदिया

यूं लिबास मुझसे उतारा नहीं गया,हर ज़ख्म मुझसे मेरा दिखाया नहीं गया । होठों पे दुःख के राग सभी गुनगुना गए,एक दर्द मुझसे मेरा सुनाया

ज़िंदगी की किताब के पन्ने,उड़ते हैं , फड़फड़ाते हैं ।कभी किसी स्थित परिस्थित में,फट जाते हैं , उखड़ जाते हैं । लेकिन किताब के हर

जल नही,कल की जिंदगी हैबचा लो जितनी उतनी ही जिंदगी है ।बूंद –बूंद तरसना पड़ेगाएक दिन पानी के खातिरकल सुहावन रहे बसयही तो जिंदगी है

आ रहा है फिर से चुनाववो फिर से बरगलाने आयेंगे त्यार रहो नागरिकोंवो भीख मांगने आयेंगेआ रहा है फिर से चुनाववो फिर से बरगलाने आयेंगे

कुछ पल तो साथ जी लो सबको अकेले जानासाथ जब भी छूटा तो फिर कहां से पाना यादों की जमी पर ही रह जाओगे सिमटकरये

मिलाकर नैनो से नैनाकरो बातें तो हम जानेना हो ओठो पे कंपनमौन दो उत्तर तो हम जानेसमझ कर मन की पीड़ा कोबहावो प्रेम की नदियांभरा

तेरे हर एक लहजे से मुखातिब फूल हैंसदा ही चूमते अशआर तेरे फूल हैकभी ना तोड़ना खिलते हुए इस फूल कोसदा मुस्कान भरते ये दिलों

धधकते आज शहरों से किनारा कर लिया मैंनेअब अपने गांव में रहकर गुजारा कर लिया मैंनेचमकती सड़के ना देखी न देखी तीव्रतम चालेअंधेरी गलियों में