
तकरार होली में
सुनाऊँ क्या तुम्हें किस्सा किया तकरार होली में ।उठाया हाथ में बेलन पड़ी थी मार होली में ।पड़ोसन पर फिदा था वो सनम मेरा सलोना
सुनाऊँ क्या तुम्हें किस्सा किया तकरार होली में ।उठाया हाथ में बेलन पड़ी थी मार होली में ।पड़ोसन पर फिदा था वो सनम मेरा सलोना
रजनीगंधा की महक, हृद में लगती आग। राधा, कान्हा के बिना, कैसे खेले फाग॥1॥ तन – मन में कान्हा बसा, मनहर लगता फाग। श्याम हृदय
मचेगी धूम खुल कर के यहाँ इस बार होली में कि बाहों में जो आयेंगे मेरे सरकार होली में जो मेरे रूबरू होंगे मेरे दिलदार
है ये रंग-ए-बहार होली का चल पड़ा कारोबार होली का देखते ही मुझे कहा उसने देखो आया शिकार होली का उसने डाला है रंग यूँ
बसंत पंचमी आई है खुशियों की लहरे छायी है इस दिन अवतरित हुई मां सरस्वती कहते है कला, विद्या की देवी मौसम भी है खुश
रंग गुलाल तुम भेज दिये हैंपरमेरे चेहरे को जो रंग जाए, वोतेरे हाथ कहां से लाऊं मैं,औरमेरा दिल जो चाहे तुझे रंगने कोतेरे गाल कहां
हर रंग में तू ही तू हैवो कौन जगह जहां तू नहीं,भोर की लाली में तुमरंग हरा बन, हरियाली में तुम,चांद से चमकीलेतुम सूरज से
बेरंग से रंग ढूंढने, बाज़ार में न जाएअपनों की प्रीतरंग, घुल मिल जाए,और होली की रौनक बढ़ाए… हर सुबह फिर गुलाबी होगीहर शाम फिर इन्द्रधनुष
वसंत आया, वसंत आया मच रहा चहुँ ओर शोर है आश्चर्यचकित हूँ मन की अवस्था को देखकर…. शांति में डूबा है या हो रहा आनंद
चहक रहा हो तन मन सारा,महक रहा हो उपवन सारा ,पतझड़ के जब छा जाये बादलबसंत ऋतु का हो उजियारा । कोयल कुहू – कुहू