कविता

Category: कविता

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तुम्हारे लिए

आज दीपक जलाऊंगा तुम्हारे लिएमन को मंदिर बनाऊंगा तुम्हारे लिएतन से मन से औ भावो से दिल में बसोंघर बनाऊंगा दिल को तुम्हारे लिए प्रार्थना

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प्रेम रंग

हजारों रंग फीके हैं प्रेम रंग सब पे भारी हैहै फीकी इत्र की खुशबू, खुशबू रिश्तो की भारी हैहमारा सारा जीवन ही भले रंगीन हो

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कुछ रिश्ते ऐसे देखे हैं

कुछ रिश्ते ऐसे देखे हैंस्वार्थो में पलते देखे हैंबाध मुखौटा सच्चाई कापैसों पर बिकते देखे हैं मन में कुण्ठा द्वेष भरेईर्ष्या में जलते देखे हैंखरे

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चांदनी रात

चांदनी रात है पर ओ ठंडक नहींसाथ मेरे तो हैं पर ओ रौनक नहींआज मन में अंधेरा ही छाया हुआसूर्य की रोशनी है पर जगमग

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सावन तुम फिर कब आओगे

सावन तुम फिर कब आओगेशुष्क हृदय में कब छाओगेफूल खिलेंगे दिल में कब तकगुलशन बन कब महाकाओगेसावन तुम फिर कब आओगेदिल की बगिया सूख रही

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ब्रज की रज

रज-रज में बसे चरण तुम्हारे ब्रज में, भूल जाऊं खुद को मैं लोट जाऊं रज में, स्वर्ग से सुंदर हर वन-उपवन ब्रज का है, जब

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