भारतीय ज्ञान परंपरा
किसी भी सभ्यता या संस्कृति का उत्थान-पतन उसकी आर्थिक स्थिति और राजनैतिक स्थिति नहीं होती बल्कि ज्ञान परम्परा होती है। भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही
किसी भी सभ्यता या संस्कृति का उत्थान-पतन उसकी आर्थिक स्थिति और राजनैतिक स्थिति नहीं होती बल्कि ज्ञान परम्परा होती है। भारतीय संस्कृति ने हमेशा ही
पात्र: प्रथम दृश्य: घर का आँगन (मां चूल्हे के पास बैठी है, सूरज पास में बैठा है।) मां (थकी आवाज़ में): बेटा, प्रिया की शादी
एक गाँव था, जहाँ एक मेहनती किसान, रामप्रसाद अपने चार बेटों के साथ रहता था। वह बचपन से अपने खेतों में पसीना बहाते हुए अपने
कहा जाता है की 84 लाख योनियों को पार करने के बाद मनुष्य का जन्म हमें प्राप्त होता है। मनुष्य जन्म मिलना ही एक सौभाग्य
“पहचान” शब्द सुनते ही मन में सवाल उठता है – आखिर हमारी पहचान क्या है? क्या यह केवल हमारा नाम है, जो हमें दूसरों
आज का विषय है कि क्या सीधा और सरल व्यक्तित्व होना भी एक चुनौती है। मेरा जवाब है; हाँ। प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव भिन्न भिन्न
नशा किसी भी प्रकार का हो, व्यक्ति के विनाश का कारण बनाता है। आज समाज में नशा करने के समान बहुत आसानी से मिल जाते
खलील जिब्रान कहता है- कुछ वर्ष पहले की बात है। मैं एक पागलखाने के बगीचे में टहल रहा था। टहलते हुए मेरी मुलाकात एक
विश्वास एक ऐसा अदृश्य बल है जो जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। यह वह शक्ति है जो इंसान को अंधकार से निकालकर
चीते की प्रतियोगिता कुत्तों से हो रही थी…. लोग तुलना करना चाहते थे कि कौन तेज दौड सकता है? लेकिन सभी हैरान थे कि चीता