रंग इन्द्रधनुष
धरती का हरापन सदा से बुलाते रहे मुझेमैं उसके आँचल में दूब बनकर पसर गया ,नीला विस्तृत आकाश हुर्र बुलाता रहा मुझेमैं उसमें घुसकर नीलकंठ
धरती का हरापन सदा से बुलाते रहे मुझेमैं उसके आँचल में दूब बनकर पसर गया ,नीला विस्तृत आकाश हुर्र बुलाता रहा मुझेमैं उसमें घुसकर नीलकंठ
1सींग के दानेपेट की आग सिंकेभीगते बेचे। 2सूर्य सुखाताउपले-भित्ती टँगेगाँव की यात्रा। 3जहाजी पक्षीवस्त्र बदल थकायात्रा एकाकी। 4सूखे तालाबटूटी पसली गिनेरश्मि ‘एक्स रे’। 5जामुन फलेपेड़
1शोख अदाएँतितली ठुमकतीगोदभराईकलियाँ शर्माती हैंमाली की बाँछें खिली । 2भारी हैं- पाँवफूलों-तितलियों केखबरें उड़ीसौंदर्य बिखरा हैलोग बलैयां लेते । 3निगल जातीभूख की लंबी जीभसारी हेकड़ीक्या-क्या
1पेड़ काँपतेचश्मा बदले मालीबढ़ई हुआ मनदिखा सर्वत्रआरी,कुल्हाड़ी संगबाजार के सपने। 2भीगी हैं लटेंउड़ रहा दुपट्टावर्षा में भुट्टा खानास्मृति ताजीसौंदर्य दमका हैमिट्टी की सुगंध सी। 3पिंयरी