डॉ अंजू सिंह परिहार
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डॉ अंजू सिंह परिहार

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ग़ज़लें सजाते हैं

कभी जब आरजू दिल की मचल कर गुनगुनाती है वो कहते हैं कि तुमने फिर कई अश्आर कह डाले कभी पूछूं कि तुमको भी कोई

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कभी एहसास लफ़्जों में कभी कुछ गीत शब्दों में 

कभी बेज़ार सी बातें कभी अनुसार की बातें कभी कुछ याद सी बहती कभी बेकार सी बातें कभी एहसास लफ़्जों में कभी कुछ गीत शब्दों

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समय ने खोले बंद पुराने

समय ने खोले बंद पुराने अनुभूति का गहरा सागर तृष्णा चुगता एक पपीहा सुधि से शीतल कई जमाने समय ने खोले बंद पुराने   प्रथम

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तू मिला कि मुझको जहाँ मिला

तू मिला कि मुझको जहाँ मिला हर दर्द मुझको धुआँ मिला वो जो इश्क़ का भी गुमाँ मिला मुझे बंदगी का जहाँ मिला तू ही

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हर वक्त तेरा ख़्याल है 

न ही हिज्र है ना बिसाल है ना उदासियों का उबाल है न ही जुस्तजू न ही आरज़ू, हर वक्त तेरा ख़्याल है तेरी याद

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चाँद के सब अफ़साने हैं

चाँद की बातें चाँद के किस्से चाँद के सब अफ़साने हैं बीती बातें बीती रातें गुज़रे कई ज़माने हैं इक अल्हड़ ने उन बातों में

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हर बाज़ी जीती थी मैंने

हर बाज़ी जीती थी मैंने दिल ने खाई मात कहाँ वाबस्ता हैं यादें जिनसे गुजरेगी वो रात कहाँ घर से बाहर हमने एकदम दुनिया अलग

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हर दुआ मे वो ज़माना चाहता हूँ 

हर दुआ में वो ज़माना चाहता हूँ फिर वही मिलना मिलाना चाहता हूँ मिल सके परछाइयाँ एहसास की रोशनी का वो ज़़माना चाहता हूँ देख

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