खुला आकाश सारा
फिर मिले की न मिले ये खुला आकाश सारा साँझ की पिघली शिला का रेशमी सा ये किनारा हो न शायद अब कभी इस राह
फिर मिले की न मिले ये खुला आकाश सारा साँझ की पिघली शिला का रेशमी सा ये किनारा हो न शायद अब कभी इस राह
क्या करूँ कैसे बताऊँ जन्म-जन्म की कथाएँ जो समय की कर्मनाशा में अकारण मिल गई जन्म लेता लुप्त होता धार में जल बिंदु सा फिर
एक सुनहरी शाम का अँंचल आंखों में लहराता है यादों में भी तन्हाई में कोई मुझे बुलाता है एक तसव्वुर एक तिश्नगी एक दुआ है
आ गया मधुमास फिर से आ गया शाख पर कोपल उगी फिर सुनी पदचाप जब मधुमास की डाल मेहंदी कि कहीं शरमा गई है सुगंधित
जीवन के सुंदर सपनों की बात बताने आ जाना रात कभी जब बीते कोमल लाली बनकर छा जाना मैंने तुमसे जो भी पाया वो श्रद्धा
तूफानों का जोर लगाकर समय नया लिख जाएंगे आज हिमालय के माथे पर सूरज नया उगायेंगे गरजेगा यह सिंधु उफनकर राह नई दिखलाएगा मातृभूमि के
दरवाज़ा दीवार हुआ बिन दस्तक बेज़ार हुआ रिश्तों के सब झूठ खुल गए जब मोहसिन तलवार हुआ लंबी चुप और दिल भी खाली, निस्बत की
मेरे बाद मेरे गीतों की का एक सुंदर संसार बसाना करुण वेदना की बेदी पर अमर प्रेम का दीप जलाना मेरा जीवन एक कथा सा
अजब अजब सी रविश मिली है दुनिया के दीवारों पर कभी तसव्वुर कभी खुशबुयें कभी अश्क़ रुख़सारों पर आओ कुछ अल्फ़ाज़ बाँटलें कुछ तो शब्द
मुझे रात सँवर जाने को कहती है सुनो नींद आँखों में ठहर जाने को कहती है अजब सी बात थी जिसने मुझे महफूज रखा था