स्त्री
अपने सपनों में सेअपनों के सपनों को बीन-बीन कर निकालती है।स्त्री कुछ ऐसी ही रची गयीजिन पे छत टिकी, उन दीवारों को संभालती है। कहाँ
अपने सपनों में सेअपनों के सपनों को बीन-बीन कर निकालती है।स्त्री कुछ ऐसी ही रची गयीजिन पे छत टिकी, उन दीवारों को संभालती है। कहाँ
“पता है आज होली खेली जा रही है.” स्त्री स्वर “हाँ…”, उदासीन पुरुष स्वर. “तो…!!” “तो?” “हम भी खेलें?” “हाँ.” “लो अबीर का थाल.” “थाल?”