आलोक सिंह "गुमशुदा"
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आलोक सिंह "गुमशुदा"

शिक्षा- M.Tech. (गोल्ड मेडलिस्ट) नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कुरुक्षेत्र, हरियाणा l संप्रति-आकाशवाणी रायबरेली (उ.प्र.) में अभियांत्रिकी सहायक के पद पर कार्यरत l साहित्यिक गतिविधियाँ- कई कवितायें व कहानियाँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं कैसे मशाल , रेलनामा , काव्य दर्पण , साहित्यिक अर्पण ,फुलवारी ,नारी प्रकाशन , अर्णव प्रकाशन इत्यादि में प्रकाशित l कई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर एकल और साझा काव्यपाठ l आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी लाइव काव्यपाठ l सम्मान- नराकास शिमला द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व सम्मानित l अर्णव प्रकाशन से "काव्य श्री अर्णव सम्मान" से सम्मानित l विशेष- "साहित्यिक हस्ताक्षर" चैनल के नाम से यूट्यूब चैनल , जिसमें स्वरचित कविताएँ, और विभिन्न रचनाकारों की रचनाओं पर आधारित "कलम के सिपाही" जैसे कार्यक्रम और साहित्यिक पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है l पत्राचार का पता- आलोक सिंह C- 20 दूरदर्शन कॉलोनी विराजखण्ड लखनऊ, उत्तर प्रदेश Copyright@आलोक सिंह "गुमशुदा"/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

सिर्फ शब्द नहीं

काश , सिर्फ शब्द नहीं,मरी या मृत तुल्य,ख्वाहिशों का गुलदस्ता है lजो कभी कभी,या लम्हों के बीच कहीं,थोड़ी,बिन जल के मर रहीमत्स्य की तरह ,जीने

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गुनगुनी धूप में

गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे lजैसे बैठी रहती हैं तितलियाँ,पुष्प पर सब भूल कर lजैसे बैठी रहती हैं चिड़ियां ,तरुवरों को चूम

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तुम्हारी उम्र

तुम्हारी उम्र न,उम्र से ज्यादा सी दिखने लगी है lआँखों के नीचे के डार्क सर्कल्स,अब गहरा से गए हैं lपेट पर फैट, थोड़ा थोड़ाहाँ, बहुत

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पता है

पता है,तुमको खोजता हूँ मैं,कभीकोलंबस की तरह ,तो कभी कस्तूरी मृग की तरह l पर, तुम मिलती ही नहीं lहाँ, सच मानिए……….मिलती ही नहीं,कहीं भी,

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तारीखों पर टंगी यादें

तारीखों पर टंगी यादेंअचानक से,मैं और तुम के बीच कीरस्सी के दोनों मजबूत छोरों को छोड़मानस पटल पर गिरने लगती हैं l जैसे गिरने लगते

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तुम फिर दबे पाँव आना

तुम फिर दबे पाँव आना,कि मेरे अंदर का सन्नाटा,तुम्हारे आने का एहसास,महसूस ही न कर सके l सारे मौन अपनी अपनी जगह परयूँ ही व्यवस्थित

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सोचता हूँ दर्द को घड़ी बना दूं

सोचता हूँ दर्द को घड़ी बना दूं ,और मैं बाहर बैठा,देखता रहूँ,उसको, एक बिंदु के चारो तरफ घूमता हुआ l और देखता रहूँ,घंटा,मिनट और सेकंड

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मर रहा होता है

आपके अंदर का मर्द मर रहा होता है ,जब कोई मनचला,किसी लड़की का रस्ता रोक,किसी लड़की को,दरंदगी का छूरा भोंक ,मुस्कुरा रहा होता है,और एक

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भगवान बन जाना

कितना आसान सा है इन्सान बन जाना,बेवजह क्यों चाहते हो भगवान बन जाना llबस थोड़ा ढालना है खुद में इंसानियत के गुणफिर तुम स्वतः देखना

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