सिर्फ शब्द नहीं
काश , सिर्फ शब्द नहीं,मरी या मृत तुल्य,ख्वाहिशों का गुलदस्ता है lजो कभी कभी,या लम्हों के बीच कहीं,थोड़ी,बिन जल के मर रहीमत्स्य की तरह ,जीने
काश , सिर्फ शब्द नहीं,मरी या मृत तुल्य,ख्वाहिशों का गुलदस्ता है lजो कभी कभी,या लम्हों के बीच कहीं,थोड़ी,बिन जल के मर रहीमत्स्य की तरह ,जीने
गुनगुनी धूप में बैठे रहो यूँ पास मेरे lजैसे बैठी रहती हैं तितलियाँ,पुष्प पर सब भूल कर lजैसे बैठी रहती हैं चिड़ियां ,तरुवरों को चूम
तुम्हारी उम्र न,उम्र से ज्यादा सी दिखने लगी है lआँखों के नीचे के डार्क सर्कल्स,अब गहरा से गए हैं lपेट पर फैट, थोड़ा थोड़ाहाँ, बहुत
पता है,तुमको खोजता हूँ मैं,कभीकोलंबस की तरह ,तो कभी कस्तूरी मृग की तरह l पर, तुम मिलती ही नहीं lहाँ, सच मानिए……….मिलती ही नहीं,कहीं भी,
तारीखों पर टंगी यादेंअचानक से,मैं और तुम के बीच कीरस्सी के दोनों मजबूत छोरों को छोड़मानस पटल पर गिरने लगती हैं l जैसे गिरने लगते
तुम फिर दबे पाँव आना,कि मेरे अंदर का सन्नाटा,तुम्हारे आने का एहसास,महसूस ही न कर सके l सारे मौन अपनी अपनी जगह परयूँ ही व्यवस्थित
सोचता हूँ दर्द को घड़ी बना दूं ,और मैं बाहर बैठा,देखता रहूँ,उसको, एक बिंदु के चारो तरफ घूमता हुआ l और देखता रहूँ,घंटा,मिनट और सेकंड
मैं अक्सर खुद से लड़नें लगता हूँ,टूटता हूँ,फिर अचानक से रोने लगता हूँ l बंद आँखों की पलकों के नीचे,दिल के सभी चारों चैंबरों के
आपके अंदर का मर्द मर रहा होता है ,जब कोई मनचला,किसी लड़की का रस्ता रोक,किसी लड़की को,दरंदगी का छूरा भोंक ,मुस्कुरा रहा होता है,और एक
कितना आसान सा है इन्सान बन जाना,बेवजह क्यों चाहते हो भगवान बन जाना llबस थोड़ा ढालना है खुद में इंसानियत के गुणफिर तुम स्वतः देखना