यूं लिबास मुझसे उतारा नहीं गया,
हर ज़ख्म मुझसे मेरा दिखाया नहीं गया ।
होठों पे दुःख के राग सभी गुनगुना गए,
एक दर्द मुझसे मेरा सुनाया नहीं गया ।
आँखों में नीर सूख कर नमकीन हो गए,
जीवन को फिर मधु में डुबाया नहीं गया ।
देकर लहू जिन पौधों को हम सींचते गए,
वो सूख रहा है किसी से बताया नहीं गया।
मासूमियत से ख़्वाब मेरी पलकों पे रह गए,
पर ख्वाबों को बोझ से भी गिराया नहीं गया।
जिद्द की गिरफ्त से तो सारे मंज़र बदल गए,
पर जिद्द भी इतनी तेज़ कि संवारा नहीं गया ।
सारे ख्यालात ज़िगर के खाई में गिर गए ,
नदियां हुई समंदर पर किनारा नहीं गया ।
किस्मत की लकीरों के निशान सिर्फ़ रह गए ,
हाथों से बहे ख़ून को सुखाया नहीं गया ।
नफरत हुई भी उनसे, जो धड़कन थे बन गए,
पर भावों को अपने गुमशुद जताया नहीं गया ।
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