१℅ बुद्ध

और अंगुलिमाल उनके पैरों में गिर पड़ा

कहानी सुनते सुनते बस यही शब्द मन में गूंजते रहे ऐसा कैसा ब्यक्तित्व रहा होगा उस योगी का जो एक खूंखार डाकू को भी नतमस्तक हो पैरों पर गिरने पर मजबूर कर देता होगा क्या वह तनिक भी डरा होगा जिस मौत से इंसान थर थर कॉंपता है वह भी विचलित ना कर पाई हो क्या वह उस डर पर शासन कर रहा था…निर्भय हो कर। 

अंगुलिमाल जो कि एक ऐसा डाकू था जो लोगों को मार कर उनकी उंगलियां काट गले में पहन लेता था इसीलिये उसका नाम अंगुलिमाल था। 

दूर दूर तक उस जगह पर कोई नहीं दिखता था इतना उसका खौफ था एक दिन अचानक बुद्ध वहां आ पहुंचे एक बड़े से पेड़ के नीचे ध्यान में बैठ गये… अंगुलिमाल को जैसे ही पता चला वह वहां पर आ धमका 

जोर से बोला जो कुछ भी है दे दो मैं तुम्हें मार डालूंगा 

बुद्ध शांत बैठे रहे वह चिल्लाता रहा बुद्ध फिर भी शांत बैठे रहे 

अंगुलिमाल चिल्लाता रहा बोला क्या तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता 

बुद्ध नें धीरे से आंख खोली मुस्कराते हुये बोले ठीक है मार लेना लेकिन एक काम तुमको करना होगा अगर कर सके तो मार लेना और नहीं कर पाये तो यह गलत रास्ता त्याग देना 

अंगुलिमाल आश्चर्य से देखने लगा इतना तेज यह कोई साधारण मानव नहीं हो सकता जिसको मौत का डर नहीं उल्टा वह मुझसे सौदेबाजी कर रहा है 

वह बोला ऐसा कौन सा काम है जो अंगुलिमाल नहीं कर सकता… अहम नें सीधे वार किया था और वहम को रास्ता मिल गया था 

बुद्ध वही शांत भाव से बोले सामने वो पेड़ दिख रहा है उससे एक पत्ता तोड़ कर लाओ। 

अंगुलिमाल हंसा यह भी कोई काम है मैं अभी ले कर आता हूं वह एक पत्ता तोड़ लाया बुद्ध को देते हुये बोला यह लो और मरने के लिये तैयार हो जाओ..। 

बुद्ध बोले अरे रूको अब इस पत्ते तो वापस पेड़ पर लगा दो 

अंगुलिमाल बोला मुझको मूर्ख समझ लिया है टूटा हुआ पत्ता वापस कैसे लगेगा? 

बुद्ध बोले जब तुम एक टूटे हुये पत्ते को वापस जीवन नहीं दे सकते तो निर्दोष लोगों को मारने का हक तुम्हें किसने दिया। 

अंगुलिमाल भौंचक्का हो गया आंखों के कोरों से पश्चाताप के आंसू बह निकले और अंगुलिमाल उनके पैरों में गिर पड़ा जिसको सख्ती से शासन से नहीं सुधारा जा सका उसे बुद्ध नें सही राह दिखा दिया 

क्या बुद्ध होना इतना आसान है जिसको मौत का भय ना हो जो इतनी कठिन परिस्थितियों में भी ना डिगे जो मौत सामने हो फिर भी आंख में आंख डाल मुकाबला कर सके और क्रूर का हृदय परिवर्तन कर सके । 

आज के सामाजिक परिवेश में ऐसे व्यक्तित्व की बहुत जरूरत है जो अनेकों यहां वहां घूमते क्रूर अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन कर सके। 

अगर हम बुद्ध ना बन सकें तो कोई बात नहीं यह इतना आसान भी नहीं है किंतु उनके आचरण का अनुसरण कर १℅ बुद्ध तो बन ही सकते हैं 

बुद्धं शरणं गच्छामि………….

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • वंदना श्रीवास्तवा

    मैं वंदना श्रीवास्तवा भोपाल की निवासी हूं. मैं पेशे से फैशन डिजायनर हूं व कई समाजसेवी संस्थाओं के साथ जुड़ कर समाज सेवा का कार्य करती हूं. मझे २००से ज्यादा प्रमाणपत्र मिल चुके हैं मैं कई प्लेटफार्म पर लिखती रहती हूं. अब तक मेरी 4 एंथालाजी छप चुकी है. स्टोरीमिरर ,कलामंथन,गृहलक्ष्मी ,वनिता व अन्य कई ई पत्रिका में मेरे लेख व कवितायें छपते रहते हैं. साहित्य श्री का सम्मान साहित्य की दुनिया मंच द्वारा दिया गया है व ITIPAA में टाप 30 iconic Achiever Awardभी मिल चुका है व एक एंथालाजी को India book of record भी मिल चुका है. पता: D-58/3 ,nikhil nestles,nikhil bunglow ,hoshangabad road,jaatkhedi, bhopal ,madhya pradesh , 462024 Copyright@वंदना श्रीवास्तवा/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!