दामिनी दमकी गगन में
फिर निराशा छा गयी
वो पास कैसे आ गयी।।
टिकते नहीं रिश्ते पुराने, जग में ऐसा वाद है
जनक सुत संग हो यदि, समझो महा अपवाद है।
सास-पतोहू में पटती कहाँ, पग-पग मचा परिवाद है
पुत्र – पत्नी से तंग इतना, घेरे उसे अवसाद है।।
चाहना किसका सफल है
कुंठा कहर सी ढा गयी
वो पास कैसे आ गयी।।
नहीं मेरे मृदुभाव अब, ना ही मृदुल स्वभाव है
प्रेम तो नाटक यहाँ है, ना ही कोई लगाव है।
हम साथ रहते ऐसे जगत में, जैसे कोई दबाव है
समझो टूटे हुए विश्वास का, बस यही प्रभाव है।।
रूप भीतर कुरूप इतना
विद्रूप बन के खा गयी
वो पास कैसे आ गयी।।
बढ़ाती वेदना विकल अंतस, विधि का विधान ऐसा
निःस्वार्थता ना जग में दिखी, सब जगह पैसा ही पैसा।
मर रहे सब धन के पीछे, मिलता कहाँ है यार वैसा
विकास से रिश्ते हैं कलुषित, स्वार्थ है तो प्रेम कैसा।।
दिखावे पे टिका जन है
दिखावा ही सबको भा गयी
वो पास कैसे आ गयी।।