।। रिश्ते।।

दामिनी दमकी गगन में

फिर निराशा छा गयी

वो पास कैसे आ गयी।।

टिकते नहीं रिश्ते पुराने, जग में ऐसा वाद है

जनक सुत संग हो यदि, समझो महा अपवाद है।

सास-पतोहू में पटती कहाँ, पग-पग मचा परिवाद है

पुत्र – पत्नी से तंग इतना, घेरे उसे अवसाद है।।

चाहना किसका सफल है

कुंठा कहर सी ढा गयी

वो पास कैसे आ गयी।।

नहीं मेरे मृदुभाव अब, ना ही मृदुल स्वभाव है

प्रेम तो नाटक यहाँ है, ना ही कोई लगाव है।

हम साथ रहते ऐसे जगत में, जैसे कोई दबाव है

समझो टूटे हुए विश्वास का, बस यही प्रभाव है।।

रूप भीतर कुरूप इतना

विद्रूप बन के खा गयी

वो पास कैसे आ गयी।।

बढ़ाती वेदना विकल अंतस, विधि का विधान ऐसा

निःस्वार्थता ना जग में दिखी, सब जगह पैसा ही पैसा।

मर रहे सब धन के पीछे, मिलता कहाँ है यार वैसा

विकास से रिश्ते हैं कलुषित, स्वार्थ है तो प्रेम कैसा।।

दिखावे पे टिका जन है

दिखावा ही सबको भा गयी

वो पास कैसे आ गयी।।

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रचनाकार

Author

  • विनोद कुमार 'कवि रंग'

    नाम - विनोद कुमार उपनाम - कविरंग पिता - श्री वशिष्ठ माता - श्रीमती सावित्री जन्म तिथि - 15 /03 /1973 ग्राम - पर्रोई पो0-पेड़ारी बुजुर्ग जनपद - सिद्धार्थनगर (उ0 प्र0) लेखन - कविता, निबंध, कहानी प्रकाशित - समाचार पत्रों मे (यू0 एस0 ए0के हम हिंदुस्तानी, विजय दर्पण टाइम्स मेरठ, घूँघट की बगावत, गोरखपुर, हरियाणा टाइम्स हरियाणा तमाम पेपरों मे) Copyright@विनोद कुमार 'कवि रंग' / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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