रजनीगंधा की महक, हृद में लगती आग।
राधा, कान्हा के बिना, कैसे खेले फाग॥1॥
तन – मन में कान्हा बसा, मनहर लगता फाग।
श्याम हृदय में राधिका, किशन प्रेम के राग॥2॥
करवट बदली रात भर, हृदय किशन की याद ।
बिन कान्हा के राधिका, कौन सुने फरियाद॥3॥
धरे कलाई राधिका, डाले कान्हा रंग ।
राधा रानी संग में, बजा रहे हैं चंग ॥4॥
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