होरी गिरि कैलाश पे खेलत गौरीशंकर। होरी…..
रंग अबीर लिया माता ने, चिताभस्म प्रलयंकर।
तारी दे दे नाचत गावत भूत पिशाच भयंकर।। होरी….
एक पाँव पर नृत्य करत हैं झूम झूम अभयंकर।
डम डम डमरू के निनाद पर मोहित कंकर – कंकर।। होरी…..
एकदन्त नन्दी मुरुगन को साथ लिए शिवशंकर।
सकल जगत के भाग्य जगावत आज ‘असीम’ शुभंकर।। होरी……
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