हां, मौन हूँ मैं…!

हाँ, मौन हूँ मैं…!

कहता कुछ नहीं फिर भी

सब समझाता हूँ।

शब्दों से हौड़ नहीं फिर भी

चीख़-चीख़ बतलाता हूँ।

एक रिश्ता हूँ सुर्ख आँखो

औऱ लहज़े का,

गूँज हूँ मैं अंतसः की

मैं विस्तार कहलाता हूँ।।

लगता है मौन में विश्राम।

इसके भाव नहीं है आम।

झूठ के है शब्द लाखों,

शाश्वत सत्य ही मौन का

अंजाम ।।

कविता भी तो मौन है।

पर भावों से अनमोल है।

शब्द पढ़े तो क्या पढ़ा,

जो समझा ही नहीं क्या मौन है ।।

सुन लेना अगर सुन सको तुम।

मौन की अदम्य शक्ति की

भाषा को तुम ।

मौन अंत नहीं आगाज़ है

हर बात का,

धीमा सहर मीठा मौन,

जीतो इस शक्ति को तुम।।

हाँ, मौन हूँ मैं,

बस अब अनवरत जल बिंदु सा

बहना है।

भाषा की आड़ के शब्दों में

नहीं रहना है।

गूढ़ तत्वों की मधुरता औऱ

प्रेम है हिय में मेरे,

राह दिखाती प्रेम की मौन

लौ,

दिए की तरह जलना है।।

 

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • प्रियंका सिंह

    जयपुर, राजस्थान, व्यवसाय-वकालत.Copyright@प्रियंका सिंह/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!