हरिजन वही है जिसे
हरि ने जना हो मित्र ।
बातें विचित्र कर
चित्त ना बिगारिए ।।
धर्म की ध्वजा के
वाहक सभी हैं यहाँ ।
निज हृद स्थल से
संसय ये टारिए।।
देखी नहीं जात रघुनाथ
भ्रात शबरी की ।
कुबरी की बेर
श्री कृष्ण को निहारिए ।।
मूढता के सागर दिन रैन
आप पैर रहे ।
छोड़ कर बैर
शीश राम पैर डारिए ।।
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