स्त्री, स्वरुप शक्ति का

स्त्री के बिना क्या सोचा जा सकता ये संसार??
स्त्री के बिना क्या सोचा जा सकता घर परिवार??
स्त्री के बिना क्या हो सकता समाज का उद्धार??

क्यों रहे सहमें, दबे कुचले हुए, आखिर क्यों??
स्त्री के अधिकार कि बात कि जाए,
तो कुछ लोग फेमिनिस्म् का ऐसा मज़ाक उड़ाते,
फिर वही लोग ऐसा दुःख जताते,
जब किसी लड़की का बलात्कार या हत्या हो जाए।

बलि लेने पर हि आँख खुलती है,
और जितनी देर से खुलती,
उतनी हि जल्दी भूल भी जाते।
फिर पहले कि तरह सामान्य नज़र आते।

लूटी तो किसी और कि अस्मत है,
मारी गई लड़की/स्त्री उनके घर कि थोड़ी है!

अजीब नहीं है, जहाँ स्त्री रूप कि पूजा होती है,
शक्ति, बुद्धि, ज्ञान, अन्न, निद्रा आदि सभी “स्त्री रूप” में,
पुजित होती है,
उनके स्वरुप् का महिमा मंडन होता है।
फिर उसी स्त्री रूप का तिरस्कार किया जाता,
कभी दहेज् के नाम पर, कभी वास्ना के नाम पर,
कभी प्रेम के नाम पर, कभी तो स्त्री होने के नाम पर।

याद रहे, सच्ची स्त्री मन से सशक्त, बातों मे दम्भ रखती है,
शक्ति स्वरुपा, खुद पर आए तब,
विनाश शत्रु का कर देती है।

Facebook
WhatsApp
Twitter
LinkedIn
Pinterest

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

रचनाकार

Author

  • पूनम गूँजा

    जगन्नाथ पूरी, ओड़िशा, Copyright@पूनम गूँजा/इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

Total View
error: Content is protected !!