1
पेड़ काँपते
चश्मा बदले माली
बढ़ई हुआ मन
दिखा सर्वत्र
आरी,कुल्हाड़ी संग
बाजार के सपने।
2
भीगी हैं लटें
उड़ रहा दुपट्टा
वर्षा में भुट्टा खाना
स्मृति ताजी
सौंदर्य दमका है
मिट्टी की सुगंध सी।
3
पिंयरी ओढ़े
रेत ढूँढती पानी
मिलों यात्रा करती
नीला आकाश
देख-देख हँसता
मेघ नकचढ़ा है।
4
गर्मी छुट्टियाँ
साँप-सीढ़ी का खेल
रोज मन ना भरे
पासा उछला
वक्त जीतता सदा
तेरे-मेरे बहाने।
5
कर्फ्यू की आग
चूल्हे शर्माने लगे
अनशन में घर
शहर बंद
भूख छिपी बैठी है
कोई हँस रहा है।
6
गुलाब हँसे
कँटीली चौहद्दी में
सौंदर्य की सुरक्षा
महँगी बिके
कोठियों,मंदिरों में
महक बिखेरने।
7
कक्षा सातवीं
बेंच अलग हुए
तुम्हारे-हमारे में
‘गर्ल्स’ उधर
शरीर जो उभरे
नीयत बदलती!
8
भोर को चखा
तोते की चोंच लाल
भूख ज़िंदा ही रहा
फड़फड़ाती
घोंसलों की उड़ानें
दानों के गाँव तक।
9
यात्री जागते
नींद की ट्रेन चली
किस्से चढ़ते रहे
गाँव उतरे
गप्पें लड़ाते बीता
तेरा-मेरा सफ़र।
10
पाठक गुम
उदास हैं किताबें
‘न्यूज़’ शोक में गए
वाचनालय
आलमारियाँ बँद
अज्ञान बँट रहा।