सुलगता अलाव

अधनंगे लोगों का वृत्त में जमाव

ताप तनिक , धुआँ अधिक

सुलगता अलाव ।

किस्सों – बुझौवलों से बने नहीं बात

मालिक के सूद सरिस फैल रही रात

पाले से पिटा हुआ

काँप रहा गाँव ।

दिन भर की खटनी से देह चूर-चूर

फल मीठा मिहनत का फिर भी है दूर

पीठ ही बिछौना है

ओढ़ना है पाँव !

ठकुआई ठंड खड़ी महलों के द्वार

अंतःपुर के लिए हर मौसम बहार

फूस पर ही पूस निठुर

साध रहा दाँव !

ताप तनिक ,धुआँ अधिक

सुलगता अलाव ।

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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