अधनंगे लोगों का वृत्त में जमाव
ताप तनिक , धुआँ अधिक
सुलगता अलाव ।
किस्सों – बुझौवलों से बने नहीं बात
मालिक के सूद सरिस फैल रही रात
पाले से पिटा हुआ
काँप रहा गाँव ।
दिन भर की खटनी से देह चूर-चूर
फल मीठा मिहनत का फिर भी है दूर
पीठ ही बिछौना है
ओढ़ना है पाँव !
ठकुआई ठंड खड़ी महलों के द्वार
अंतःपुर के लिए हर मौसम बहार
फूस पर ही पूस निठुर
साध रहा दाँव !
ताप तनिक ,धुआँ अधिक
सुलगता अलाव ।
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