न काहू से ऐ यारी, न काहू से प्यार,
सबके मन मे राम है, राम मैं बहे माघक बयार,
आप किजूँ, अपना-अपना व्यापार,
बस मुद्रा राम नाम के होबे, ई तना करिये, राम पर ऐतबार।
जन्मधरती वाली मैथिली-बज्रिका को माँ,
बाँकी को मौसि, हम समझते है,
फिर भी, न जाने लोग, ‘क्यों गाली वाली’ बिहारी कहते है।
छोड़ मनोरमे जाने दे, हम प्यारे राम के,
बिहारियों को,
समझ कर, उन्हें समझआते है,
बाँकी राम जाने, हम अपनी रामायण आगे बढ़ाते है।
रूठे रंगरुटों, बिहारी सही वाले, भाईयों को बुलाते है,
जब मर्जी हो, या मालिक की अर्जी हो,
नव वर्ष अभई, आया कहाँ,
बासन्ती बयार में हम राम की धुन को बहआते है।
जैसी भी हो, खट्टी मीठी अपनी ज़ुबानी, कहते है,
अभी तो, शिव- विवाह की रात्रि का भी आना बाँकी है।
फिर, जोगीरा भी, सुनना होगा,
तब तक, हम यूँ ही, चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तक बढ़ते है।
अभी जो भी गुज़रे, सुहानई झाँकि है,
सुन ऋ मेरी मनोरमे, नव वर्ष का आना बाँकी है।।