सुग्गो

दर्जन भर सूअरों के पीछे – पीछे दौड़ लगाती हुई सुग्गो जब ब्राह्मण टोला के पास जाती तो नीले और सफेद कपड़ों में सज धज कर स्कूल जाती हुई लड़कियों को देखकर कुछ पल के लिए ठहर सी जाती ।

सोचने लगती,,,,, काश ! मैं भी इन्हीं लड़कियों की तरह स्कूल जा पाती, इन्हीं की तरह मेरा भी जन्म किसी ऊंची बिरादरी में होता तो आज मैं इन सूअरों के पीछे – पीछे दौड़ ना लगाती होती, मेरे मां बाप भी इन्हीं के माता पिता की तरह मुझसे भी लाड- प्यार करते ।

पता नहीं पिछले जन्म में कौन सा पाप किया था जो इस नींच कुल में जन्म लेना पड़ा । दिन भर इन सूअरों के पीछे दौड़ लगा – लगा कर घोड़ी जैसी बन गई हूं। अब तो घर आंगन में भी सीधी चाल चली नहीं जाती । थक जाती हूं दिनभर दौड़ती – दौड़ती और शाम को घर आओ तो बप्पा की भद्दी – भद्दी गालियां । कभी पेट भर भोजन भी नसीब नहीं होता ? बाबू – बबुवान टोली में माय जो दिन भर बासी खुसी जूठन मांग कर लाती है वही खाकर तो जी रही हूं । पेट भर भोजन तो तब नसीब होता है जब पाली पन्तर में कहीं कोई भोज होता है। वही दिन तो हमारे लिए पर्व – त्यौहार का दिन भी होता है ।

हे देव ! बताओ ना कौन सा पाप किया था जो ऐसे नींच कुल में जन्म लेना पड़ा ।

कहने के लिए तो सब इंसान एक जैसे होते हैं पर भाग्य सब का एक जैसा कहां होता है । कौन सी समानता है मुझ में और इनमें , कोई भी तो नहीं । लोग स्वर्ग नर्क की बात करते हैं , मेरी दादी भी यही कहती है कि अच्छा करने वाले को स्वर्ग और बुरा करने वाले को नर्क मिलता है पर यह स्वर्ग नर्क किसने देखा है , यहीं तो है स्वर्ग और नर्क । मरने के बाद क्यों? हम तो जीते जी नर्क भोग रहे हैं । चाह कर भी मेरे जैसे लोग इस नर्क से नहीं निकल पाते हैं । और इन लड़कियों को देखो अनचाहे स्वर्ग का सुख भोग रही हैं ।

लड़कियों का झुंड जब आंखों से ओझल हो गई तो सुग्गो ऐसे अकचका के होश में हाई जैसे कोई बुरा स्वप्न देख कर जागी हो । बाप रे !,,,, चितकबरी सूअर कहां चली गई ? उसके बच्चे भी तो नहीं हैं , कहीं किसी के आंगन में चली गई तो गजब हो जाएगा ,फिर से पहाड़ टूट पड़ेगा । हे देवा ! छ: महीने भी तो नहीं हुए इस घटना को जब एक सूअर भोला मालिक के आंगन घुसकर टुबेल पर रखे झूठे बर्तनों को मुंह लगा दिया था । कैसे घसीटते हुए इनके नौकरों ने ले आए थे बप्पा को । मालिक साहब खुद तो हाथ नहीं लगाए थे, छूत जाते ना ? डोम को छूने से ,पर अपने नौकरों से नारियल का पेड़ में बांधकर मारते मारते लहू लुहान करवा दिए थे । फिर मैया से गाय का गोबर से पूरा आंगन दरवाजा निपबाया गया और जितने बर्तन छुताया गया था उससे दोगुने बर्तन खरीदवाया गया था । जो भी पैसे मेरी शादी के लिए जमा किए गए थे सब के सब उसी में लग गए थे । कितनी गुहार लगाई थी मैया ने मालकिन से कि छुताए गए बर्तन तो दे दीजिए मालकिन ! पर उसने एक भी बर्तन नहीं दिया बोली नौकर चाकर के खाने में काम आएगा । और बप्पा को जब टोला वाले छुड़ाकर ले गए थे तो उसने मुझे मार मार कर अधमरा कर दिया था । कभी नहीं भुला पाऊंगी इस घटना को ,कभी नहीं ,सात जनम में भी नहीं ।

हुर्ररर,,,, हुर्रररर,,, करती हुई सुग्गो के जान में जान तब आई जब गिरिधर बाबू के घर के पास गड्ढे में सूअर को कीचड़ में लोटपोट करते देखी । अपनी छड़ी को पटक पटक कर सुग्गो सूअर को कीचड़ से निकाल रही थी कि तभी गिरीधर बाबू की छोटी बहू वंदना मैडम उसे ठोक दी,,, अरे सुग्गो तूं फिर से इधर सूअर को लेकर आ जाती है ,भूल से भी यदि किसी का आंगन घुस गया ना तो फिर वही होगा जो हुआ था ।

सुग्गो मैडम की बात का कोई उत्तर न देकर कीचड़ से सने सूअर को लेकर आगे बढ़ गई ।

स्कूल की छुट्टी के समय शाम चार बजे सुग्गो फिर अपने सूअरों के साथ स्कूल के पास खड़ी होकर घर जाती हुई लड़कियों को टकटकी लगाए देख रही थी कि तभी वंदना मैडम पास आकर बोली,,,,सुग्गो ! तुम रोज इन लड़कियों को स्कूल आते – जाते टकटकी लगाकर देखती रहती है , तुम्हारा मन भी इन्हीं लड़कियों की तरह स्कूल आकर पढ़ने का नहीं करता है क्या ?

सुग्गो कुछ नहीं बोल पाई । अपना सिर झुका कर नीचे पैर की तरफ देखती रही तो मैडम ने पुनः पूछा,, बोलो सुग्गो क्या तुम भी पढ़ना चाहती हो ?

पढ़ना कौन नहीं चाहता है दीदी ! मैं भी चाहती हूं , मेरा भी मन करता है। बहुत मन करता है दीदी ! स्कूल में आकर पढ़ने का अच्छा जीवन जीने का । पर मन करने से हीं क्या होगा भाग्य में लिखा भी तो होना चाहिए ना ? जब जन्म हीं नीच जाति में हुआ तो वही सब करना पड़ेगा ना जो हमारी जाति के लोग करते हैं । सुबह में आपने कहा था ना दीदी ! कि इधर क्यों आ जाती है सूअर लेकर पर मैं क्या करूं मन मचलने लगता है इधर आने के लिए , स्कूल आती-जाती लड़कियों को देखने के लिए ,मेरे भाग्य में तो नहीं लिखा है स्कूल आना पर इन्हें देख कर मन को बड़ी तसल्ली मिलती है । अब तो मन भी इन्हें देखने का आदी हो गया है सो इधर आ जाती हूं ।

सुग्गो की बात सुनकर मैडम की आंखें डबडबा गई । आंसू पोछ कर बोली ,,, तुम भी पढ़ सकती हो सुग्गो ! समय बदल गया है , जात पात का भेद मिट रहा है हर जाति के लड़के लड़कियां सब को पढ़ने का अधिकार है । सरकार की तरफ से सभी के लिए पढ़ाई अनिवार्य कर दी गई है । तुम अपने मां बाप को समझा-बुझाकर स्कूल आओ तो तुम भी इन्हीं लड़कियों की तरह पढ़ सकती हो ।

डबडबाई आंखों से सुग्गो बोली,,,, नहीं आने देगा ना दीदी ! मेरी बिरादरी की लड़की तो क्या किसी का लड़का भी पढ़ने आता है क्या ?

कोई आए ना आए तुम आकर देखो, हो सकता है तुम्हारे देखा देखी में और भी बच्चे आने लगेंगे ।

पर मेरे मां-बाप को कौन समझाए उल्टे मुझे मार खानी पड़ेगी और सौ गालियां अलग ।

दीदी एक बात बोलूं,,,

हां हां सुग्गो बोलो ना क्या बोलना चाहती हो,

क्या आप मेरी मैया को समझाएंगी दीदी ? मेरा मन बहुत करता है , मैं भी स्कूल आकर पढ़ूं । प्लीज दीदी आप मेरी मैया को समझा देंगी तो हो सकता है मैया मान जाएगी ।

कहते कहते सुग्गो फूट-फूट कर रोने लगी । फिर आंसू पोछकर बोली ,,,,,, दीदी मैं आपका पैर तो नहीं पकड़ सकती आप छूत जाएंगी ना ? फिर आप को पानी में गंगाजल डालकर नहाना पड़ेगा । पर हाथ जोड़ती हूं दीदी! आप एक बार मेरी मैया को समझा कर देखिए ना हो सकता है आपके समझाने से वह मान जाए । आप डरिए मत कि आपको वह मलिन बस्ती में जाना पड़ेगा वहां तो लोग नाक दबाकर हीं जाते हैं । मैं मैया से कहूंगी कि मैडम दीदी साग धोने के लिए एक ढाकी मांगी है । वह दौड़ती हुई आ जाएगी दो पैसे का लोभ है ना ।

सुग्गो की बातों से मैडम की आंखें फिर से नम हो गई बोली ठीक है भेज देना मैं समझाने की कोशिश करूंगी ।

सुबह आठ बजे नहा धोकर स्कूल के लिए मैडम जब तैयार हो रही थी तभी एक साल की बच्ची को गोद में और एक हाथ में ढाकी लिए सुग्गो की माय आंगन में आकर दीदी दीदी पुकारने लगी ।

अरे सुगिया माय! इतनी जल्दी ढाकी लेकर आ गई , वाह कितनी अच्छी ढाकी है रंगाई पुताई भी इतनी जल्दी कैसे कर दी ?

का बताएं दीदी ! रात भर सोई नहीं सुगिया । उसी ने ढाकी बनाई है बनाते बनाते सुबह हो गई ।

हाथ में ढाकी लेकर मैडम बोली,,, वाह मजबूत भी खूब है कितने नजदीक नजदीक में बांध दी है ,कितने की है ?

अरे आपसे का मोल भाव करूं दीदी ! सुगिया बोली दीदी जो देंगी रख लेना हटिया में तो पन्द्रह में बीक जाती है ।

सुगिया माय के हाथ में बीस का नोट रखती हुई मैडम बोली,, ये लो पांच रुपए सुगिया को मिठाई खाने के लिए दे रही हूं ।

सुगिया माय झट से हाथ पीछे खींच कर बोली,,,, राम राम ये क्या कर दिया दीदी आपने? अब तो आपको फिर से नहाना पड़ेगा , आपने मेरा हाथ छू लिया है। बोलते बोलते उसके हाथ से नोट भी नीचे गिर गयी ।

मैडम नोट उठाकर फिर से सुगिया माय के हाथ में रखती हुई बोली,,,, नहीं रे मैं यह सब नहीं मानती , सभी इंसान एक जैसे होते हैं, बस तुम लोग अपना रहन-सहन थोड़ा सा बदल लो तो भेदभाव सब खत्म हो जाएगा ।

नहीं होगा दीदी! सात जन्म में भी नहीं होगा । अभी कुछ महीने पहले आपने नहीं देखा कि क्या हुआ हमारे साथ वो तो सुगिया का ब्याह के लिए रुपया जमा करके रखे थे इसीलिए उसके बप्पा की जान बच गई वरना मारे हीं जाते ।

हां जो हुआ बहुत बुरा हुआ मुझे भी उसका बहुत अफसोस है पर मैं उस समय यहां नहीं थी यहां होती तो जरूर रोकती । पर ये तुम सुगिया का ब्याह की बात क्यों कर रही हो अभी तो वह बच्ची है ना?

हम लोगों में ऐसा हीं होता है दीदी ! आप नहीं जानते जब सुगिया साल भर की थी तभी उसकी दादी ने उसका ब्याह खवासपुर में तय कर दिया है बस अब तो ब्याह होना बांकी है पैसा रहता तो वो भी हो जाता ।

क्या कहती हो सुगिया माय! सुगिया का ब्याह अभी , इस उम्र में, राम-राम ऐसा अन्याय मत करो। सुगिया अभी बहुत बच्ची है ,बड़ी नेक बच्ची है ,स्कूल आते-जाते रोज मिल जाती है ।

हां दीदी ! ये बात तो डोमडा़ही के लोग भी बोलते हैं कि सुगिया बड़ी नेक बच्ची है । सो गालियां खाकर भी कभी बप्पा को जवाब नहीं देती है , हां दारु के नशे में जब वह मेरे साथ मारपीट करने लगता है तो खुद मार खाकर भी मुझे बचा लेती है और बाप्पा को भी दो चार बातें झाड़ देती है ।

एक बात बोलूं सुग्गो की मां!

मैडम के मुंह से सुग्गो की मां संबोधन सुनकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । कितना अपनापन और कितना प्यार है इन शब्दों में आज तक तो सब ने सुगिया माय हीं कह कर बुलाया है,,,, हां हां दीदी कहिए ना क्या कहना चाहती हैं ,,

नहीं पहले वादा करो कि जो मैं कहूंगी उसे ध्यान से सुनोगी समझोगी और अच्छा लगे तो मानोगी भी तभी कहूंगी ।

हां दीदी ! क्यों नहीं मानुंगी आप कहो तो सही ।

देखो सुग्गो की मां ! सुग्गो बड़ी होनहार और समझदार बच्ची है, आज तुम्हारे घर में ना रह कर हमारे घर होती तो कुछ और होती । सुग्गो को पढ़ने का बड़ा मन है, रोज स्कूल जाती आती लड़कियों को टकटकी लगाकर देखती रहती है । जानती हो उस दिन जो भोला बाबू का आंगन में सूअर घुस गया था क्यों ? क्योंकि सुग्गो का ध्यान भटक गया था । वह स्कूल की लड़कियों को देखने में इस तरह खो गई थी कि उसे ध्यान हीं नहीं रहा । मेरी बात मानो तो उसे स्कूल आने दो वह जरूर पढ़ लिखकर कुछ बन सकती है ।

राम राम ! ये क्या करती हो दीदी! डोम की लड़की होकर पढेगी? आपकी बिरादरी की लड़कियों की देखा देखी करेगी ?असंभव असंभव,,,,,।

कुछ भी असंभव नहीं है । जानती हो तुम लोगों को कितना आरक्षण मिला है ? पढ़ लिख लेगी तो हमारी जाति की लड़कियों से पहले नौकरी मिल जाएगी । हमारी लड़कियों को नौकरी मिले या ना मिले फिर भी हम जान जी लगा देते हैं पढ़ाने में ।

आप लोगों की बात अलग है दीदी! आप हीं के समाज के चार दुश्मन खड़े हो जाएंगे । आपकी लड़कियां ओछा काम करेगी तो लोग हसेंगे ,मजाक उड़ाएंगे पर हमारा मजाक तो तब उड़ाया जाएगा जब हमारी बेटियां कोई अच्छा काम करेगी , सब कहेंगे देखो देखो डोम की बेटी होकर हमारी बेटी का देखा देखी करती है । आपके आगे तो खड़े होने की भी हमारी हस्ती नहीं है दीदी !

ऐसा मत कहो सुग्गो की मां जमाना बदल गया है लोग क्या कहेंगे इसे छोड़ो। लोग क्या हमें नहीं कहते ? मेरा भी उपहास किया जाता है । कहने वाले कहते हैं ये देखो घर वाला दुकानदार और घरवाली चली मास्टरी करने , तो मैं क्या करूं छोड़ दूं नौकरी ,घर बैठ जाऊं लोगों के डर से बोलो ?

अब आपको मैं कैसे समझाऊं दीदी! आपने तो मेरी बोलती ही बंद कर दी ,पर बात सिर्फ लोगों की नहीं है हम गरीब लोग अपनी बिटिया को भला कैसे पढ़ाएं ,जिसे कभी पेट भर खाना ना मिला हो ,जो मरघट के मुर्दे के कपड़ों से अपना तन ढकता हो ।आप लोगों के घर का वासी- खुसी भोजन से बच्चों को पालती हूं । आपके घरों में भूल से भी यदि कुत्ता घुस जाता है तो खाने पीने की चीजें फेंक दी जाती है ,पर हम तो भोज भात में पत्तल चाटते हुए कुत्तों के मुंह से छीन -छीन कर जूठन जमा करते हैं, उसे सुखा – सुखा कर रखते हैं कि झड़ी बदरी में जब बाहर ना निकल सकूं तो वही सुखोटी खाकर जी सकूं । कहते-कहते वह फफक पड़ी,,,।

मैडम की आंखें भी छल छला गई फिर भी हिम्मत बटोर कर बोली-इसी से छुटकारा पाने के लिए तो कहती हूं । यदि चाहोगी नहीं तो बदलाव कैसे होगा? क्या तुम अपने बच्चों को खुशी देखना नहीं चाहती?

चाहती हूं दीदी चाहती हूं भला कौन मां ऐसी होगी जो अपने बच्चों का सुख नहीं चाहती ,पर हम तो समाज के किसी कोने में रहकर सापित जीवन जी रहे हैं ना ? नरक भोग रहे हैं दीदी नरक ।

हां तुम्हारा कहना सौ टका सत्य है पर इससे निकलने की कोशिश तुम्हें खुद करनी पड़ेगी। सरकार ने तो नियम बना दिया पालन करना तो तुम्हारा भी कर्तव्य है।

मैं अनपढ़ गवार औरत आपकी बात नहीं समझ पा रही हूं दीदी ! जिसे पेट भर भोजन नहीं मिलता हो वह अपने बच्चों को पढ़ाने लिखाने की बात कैसे करें ,कहां से लाऊंगी पैसे तो खर्च होंगे हीं ना ?

होगी, पर मामूली नहीं के बराबर कपड़े किताब से लेकर खाना भी सरकार दे रही है फिर छात्रवृत्ति के रूप में कुछ पैसे भी मिल रहे हैं बस तुमको सिर्फ स्कूल भेजना है । तुमने वादा किया है मेरा कहना मानो और कल से सुग्गो को स्कूल भेजो जहां दिक्कत होगी मैं देख लूंगी ।

ठीक है दीदी मैं घर वालों को समझाने की कोशिश करूंगी।

लो अब यह ढाकी के पैसे लो और खुशी-खुशी जाकर सुग्गो को स्कूल भेजने की तैयारी करो । कहकर मैडम ने बीस के नोट उसके हाथ में रख दी ।

सुग्गो की मां हाथ खींच कर दो कदम पीछे हटती हुई जी कूच कर बोली हे देवा ! ये क्या किया आपने दीदी ! आपने तो मेरा हाथ छू लिया अब आपको फिर से नहाना पड़ेगा ना?

नीचे गिरे नोट को उठा कर सुग्गो की मां का हाथ में पुनः रखती हुई मैडम बोली- बिल्कुल नहीं, नहीं नहाना पड़ेगा मैं छुआछूत नहीं मानती सब इंसान एक जैसे होते हैं ।

हाथ में नोट लिए सुग्गो की मां एकटक मैडम की ओर देखती रही । उनकी आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी हाथ जोड़कर कांप ते स्वर में बोली- इतना मान मत दो दीदी ! संभाल नहीं पाऊंगी,,,,,।

बस बस इतनी प्रशंसा करने की जरूरत नहीं है अब जल्दी जाओ मुझे भी स्कूल जाना है।

अपने हाथ में बीस का नोट देखकर सुग्गो की मां आंसू पूछती हुई बोली मेरे पास वापस करने के लिए पांच रुपए नहीं हैं दीदी आप ही खुला दे दीजिए ना?

अरे कुछ वापस करना नहीं है ।जाओ इतनी अच्छी ढाकी बनाने के लिए सुग्गो को पांच रुपए का इनाम दे रही हूं आगे भी बहुत कुछ देना है अब जाओ,,।

आंसू पूछती हुई सुग्गो की मां एक कदम आगे जाती फिर एक बार मुड़कर मैडम की ओर देखती गली पार करते करते ना जाने कितनी बार मुड़ मुड़कर देखती रही ।

दहलीज पर खड़ा मैडम का पति विनायक बाबू यह दृश्य आदि से अंत तक देखता रहा । गर्व होने लगा अपनी पत्नी पर यह सब शिक्षा का प्रभाव है आज घर में बैठी रहती तो ऐसा संस्कार कहां पाती ।

घर जाकर सुग्गो की मां जब ये सब बातें घरवालों को बताने लगी तो उसका पति फकीरचंद तो नशे में धुत कुछ नहीं समझ पाया पर उसकी सास माथा पीट कर बोली – क्या बोलती हो सुगिया माय! बभनटोली जाकर यही सब सीखती हो क्या ?अरे वो मैडम ने जो पट्टी पढ़ाई सो तुमने पढ़ ली ? सुगिया घर की बड़ी बेटी है ,घर संभालती है फकीर बा तो हमेशा दारू पीकर टर्र,,,रहता है कैसे चलेगा घर का कामकाज?

मैं सब संभाल लूंगी माय! बेच दूंगी सभी सूअर । वैसे भी सूअर के सारे पैसे तो आपका बेटा दारू में उड़ा देता है पैसा नहीं रहेगा तो दारु पीना भी कम हो जाएगा । मैं मांग चांग कर बच्चों का पेट भर लूंगी हाट बाजार सब कर लूंगी ।

घर तो संभाल लेगी पर सुगिया को कैसे संभालेगी ? अरे उस स्कूल में बभन टोली के बच्चे पढ़ते हैं हम अछूत जात की बेटी उनके बीच कैसे पढेगी, कैसे रहेगी दिनभर स्कूल में ? यह मुंहफट लड़की किसी से झगड़ा कर लिया ऊंच-नीच कुछ कह दिया तो भूकंप हो जाएगा । भूल गई भवन टोली वालों ने क्या-क्या किया हमारे साथ?

इसकी चिंता मत करो माय ! मैडम सारी जिम्मेवारी लेने की बात कही है । जानती हो उसने मेरा हाथ पकड़ कर पांच रुपए ज्यादा मेरे हाथ में रख दिये। वह छुआछूत को नहीं मानती है बहुत अच्छी है मैडम सुगिया का भाग बदल देगी । हे माय! यदि सचमुच सुगिया पढ़ लिख लेगी ना तो इस नरक से निकाल लेगी हम सबको । जाने दे, जाने दे खुशी-खुशी जाने दे माय! हमारी बेटी का जीवन संवर जाएगा।

दिन भर सुगिया माय सुग्गो के स्कूल जाने की तैयारी में लगी रही। उसके सारे फटे पुराने कपड़े धो धा के साफ कर दी । सुग्गो कितनी खुश थी इसे कौन बता सकता है । दूसरे दिन आठ बजते बजते सुगिया माय घर का सारा कामकाज निपटा कर सुग्गो को स्कूल के लिए तैयार कर दी। साफ-सुथरे कपड़े में बैग लटकाए दोनों कंधों पर लटकती हुई चोटियां पैर में चप्पल देख कर डोम टोले के लोग आंखें फाड़ फाड़ कर देखते रह गए। शायद पहली बार सुग्गो के बाल की चोटी की गई थी।

चिड़ियों के घोंसलों की तरह बिखरे बाल लिए सूअर के पीछे पीछे दौड़ती हुई जिस राह पर वह रोज जाती और जाते-जाते अपने सपनों में खो जाती वह सपना आज साकार हो गया । उसी राह पर आज वह अपने तेज तेज कदमों को अपनी मंजिल की ओर बढ़ाने लगी।

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रचनाकार

Author

  • अरुण आनंद

    कुर्साकांटा, अररिया, बिहार. Copyright@अरुण आनंद/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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