गुबारे दिल न जाने कब से है रोका हुआ साहिब
तुम्हें पहचानने में है मुझे धोखा हुआ साहिब
हुये थे जब मुहब्बत में ये इक जैसे ही दोनों तब
यहाँ मशहूर किस्सा देव पारो का हुआ साहिब
जुनून-ए-इश्क़ है यह रोकने से रुक नहीं सकता
बिफर जाता है दीवाना सदा टोका हुआ साहिब
लहू बहता है दिल से क्यों सबब मालूम तो होगा
तुम्हीं ने है जफा के खार को बोया हुआ साहिब
खता मेरी है क्या इसमे सनम जब आपने ही तो
समंदर प्यार का सदियों से है सोखा हुआ साहिब
हैं हम तन्हाइयों में खुश उधर ग़मगीन तुम बैठे
यही इंसाफ कुदरत का बहुत चोखा हुआ साहिब
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