महीनों में ये सावन का महीना दर्ज़ कर देना।
बिना उनके गुज़ारा था बुझा-सा दर्ज़ कर देना।
तमन्ना टूट कर बिखरी, मुहब्बत का भरम टूटा,
मेरी नाकाम उल्फ़त का फ़साना दर्ज़ कर देना।
भले तुम ग़ैर के हो पर मुझे तुमसे मुहब्बत है,
हुआ था एक आशिक़ भी दिवाना, दर्ज़ कर देना।
निगाहों से हमें धोखा हुआ था प्यार का वरना,
मुहब्बत में न होता यूँ ख़सारा दर्ज़ कर देना।
मिटा देता है हँस के जो समुन्दर के लिए ख़ुद को,
ज़माने वालो उसका नाम दरिया दर्ज़ कर देना।
अगर हँसने हँसाने पर कोई कालम लिखा जाए,
छुपाकर दर्दो-ग़म सारे, ठहाका दर्ज़ कर देना।
उसे चाहा है शिद्दत से ख़बर तक है नहीं उसको,
हुआ मिलना नहीं मुमकिन, ये किस्सा दर्ज़ कर देना।
हसीनों,नाज़नीनों से जहाँ भर का चमन महका,
हुआ कलियों का दीवाना, ज़माना दर्ज़ कर देना।
नहीं दिल मेरा आवारा तुम्हीं पर आ के ठहरा है,
जुदाई में हुआ पागल, ‘अकेला’ दर्ज़ कर देना।