पुस्तक समीक्षा- अक्टूबर जंक्शन
लेखक – दिव्य प्रकाश दुबे
प्रकाशक – हिन्द युग्म
सामान्य शब्दावली में, एक किस्सागो से कहानी सुनने जैसा है इस पुस्तक को पढना . लेखक ने प्रस्तावना में ही कह दिया है कि कहानियां लिखना ऐसे ही है जैसे कुछ न कुछ ढूंढते रहना .यही कुछ ढूँढने की यात्रा शब्द रूप में हमारे सम्मुख कथानक बनकर आती है . लेखक के लिए रचना का सृजन एवं माँ का शिशु को गर्भ में धारण करना एक सामान ही है . जैसे माँ की कोख से शिशु जीवन प्राप्त करता है वैसे ही लेखक के अंतर्मन में कथा पनपती है . लेखक यदि कथानक के प्रति गंभीर है विचारों में सुलझाव है तभी एक सुन्दर रचना का जन्म होता है एवं तभी कहानी उस रूप में आती है जो पाठक को अपनी सी लगे, क्यूंकि लेखक यदि स्वयं के विचारों के प्रति स्पष्ट एवं इमानदार नहीं है तो कथावस्तु के साथ न्याय होने की उम्मीद कदापि नहीं करना चाहिए अन्यथा निराशा ही हासिल होती है . पुस्तक में मालुम होता है मानो शब्दों के साथ खेलना लेखक का शौक है, लहजा ऐसा मानो आपका कोई मित्र आपसे सामान्य सी बातें कर रहा हो . नायिका के ज़रिये संभवतः हमें लेखक के स्वयं के कुछ तज़ुर्बों की झलक मिलती है .
कई स्थानों पर कुछ गहरी बातें भी है जिनहें पढ़ कर निश्चित ही पाठक को सोचने के लिए विवश होना ही होगा. जैसे की – कई बार थोड़ी देर के लिए चले जाना बहुत देर के लिए लौट आने की तयारी के लिए ज़रूरी होता है . या फिर – एक दिन किसी के नाम कर देना एक उम्र किसी के नाम कर देने जैसा है उस एक दिन में ही सब समां जाता है.ऐसे ही बहुत सुन्दर भाव विभिन्न मौकों पर दिए गए है . यूँ तो वाक्य सामान्य बोलचाल के लहजे में ही है आसान शब्दों का इस्तेमाल ही किया गया है मात्र क्लिष्टता निर्मित करने या दिखावे के लिए भारी भरकम शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है किन्तु कहना ही होगा कि इस सहजता में ही रस आ गया है . भावनात्मकता के साथ कुछ कुछ , या कहें उस से थोड़ी ज्यादा फिलासफी भी है किन्तु बोरियत की सीमा से बहुत पहले ही लेख़क आपको दुसरे रस्ते ले चलता है अतः स्वीकार्य है. पाठक को बाँध कर रखने की क्षमता लेखनी में विद्यमान है साथ ही युवा लेखकों के लिए सन्देश भी है की बिना अश्लील हुए भी एक सुन्दर पठनीय पुस्तक की रचना की जा सकती है .
प्रारंभ में कथानक थोड़ा सा मंथर गति से आगे बढ़ता है किन्तु आगे बढ़ने के साथ लेखक का कथानक पर पूर्ण नियंत्रण नज़र आता है . बाज़ जगहों पर लेखक ने कुछ सुन्दर वाक्यों का भी चतुराई से प्रयोग किया है जो की ..घाव करे गंभीर वाली कहावत चरितार्थ करते है किन्तु पाठक को कही भी व्यर्थ के शब्द जंजाल में उलझाने के प्रयास न करते हुए बड़ी स्पष्टता से इमानदारी बरतते हुए चंद मौकों पर निर्णय से स्वयं को दूर रखते हुए पाठक पर ही छोड़ दिया , मेरे विचार से ऐसा करने का साहस वही लेखक कर सकता है जिसके विचारों में स्पष्टता हो और जिसे अपनी लेखनी पर एवं अपनी लेखन कला पर पूरा यकीन हो.
हर पल एक मीठा सा रोमांच भी उस अनजाने से रोमांस के बीच में बना कर रखा है जो रोमांस नहीं है पर प्यार जैसा कुछ है या शायद इसके उलट है ,नायक नायिका दोनों के जीवन में खालीपन है , प्यार की तलाश दोनो को है और दोनों जानते भी है की यही उनका वाला प्यार है और हर उस तरह से जिस तरह से सामान्य प्यार जतलाया जाता है जतला भी देते है पर कहने में दोनों ही कही आकर ठिठक जाते हैं . लेखक द्वारा एक पहेली सी बना कर छोड़ दी गयी है जब आगे पढेंगे तब सब कुछ सामने आना ही है .आपका रोमांच बनाए रखते हुए आगे चलते हैं फिलहाल तो इस प्यार को मै क्या नाम दूं वाली बात है और इसी पर आकर बात ठहरी है .
आज की जिंदगी में सबकी अपनी अपनी समस्याएं है सब के अपने दर्द और फ्रस्ट्रेशन है कथानक के नायक एवं नायिका के ज़रिये आज के प्रगतिशील युवा के अंतर्द्वंद को सामने लाने का जतन किया है . शून्य से शिखर और अर्श से फर्श पर आने की नायक की यात्रा , सब कुछ हासिल करने का जुनून ,पा लेने पर उसके खो जाने का डर और फिर आगे और आगे कहीं न कहीं जीवन का सच जान कर बिना कुछ दर्शाए ही आध्यात्म की और झुकाव . नायिका का नायक से थोडा अधिक मुखर , वर्जनाओं से मुक्त , संघर्षशील ,गगन छू लेने की आकांक्षा रखने वाली सामान्य मध्यमवर्गीय लड़की किन्तु फिर भी नायिका का चरित्र चित्रण कुछ जगहों पर उलझा जाता है और जीवन में संघर्षों से लड़ते हुए भी जीवन जीने की आज के युवा की सोच को सुन्दरता से बखान करता है .
कहीं न कहीं अंतर्द्वंद के बीच उलझता सुलझता नायक एवं स्वयं को स्थापित करने हेतु जूझती नायिका , दोनों का रिश्ता पाठक के लिए एक पहेली जैसा ही है , रोमांस है या शायद अच्छी वाली दोस्ती . प्यार होने या न होने का रोमांच सम्पूर्ण कथानाक में नज़र आता है कभी दोस्त कभी हमसफ़र कभी प्रेमी युगल और कभी बस लड़का लड़की या स्पष्ट कहें तो मर्द और औरत .लगता है जैसे दोनों ही प्यार तलाश रहे है , दोनों ही स्वतंत्र है नवयुवा भी नही है कहीं आपस में बंधे हुए भी है पर स्वतंत्र भी है शायद खुद ही समझ नहीं पा रहे की कब कहें और कहें तो क्या कहें .जीवन में जीने के साथ साथ बहुत आगे बढ़ने की चाह और जो बढ़ चुका है उसे जीवन जी लेने की चाह , सभी खोज रहे है दौड़ रहे है एक दौड़ में और आगे बस दौड़ ही है
कथा के नायक के अंतर्मन पर बनारस के अस्सी घाट जाने के बाद जो प्रभाव हुआ संभवतः वह उसके जीवन में एक अलग ही मोड़ लाने वाला सिद्ध हुआ . नाव में यात्रा के दौरान मिले बाबा का गान की “सब ठाठ धरा रह जायेगा जब लाड चलेगा बंजारा” के द्वारा बहुत गहरा सन्देश दिया जा रहा है . लेखक ने युवाओं से सम्बंधित अनेकों वर्जनाओं को तोड़ा है. कह सकते है की कुछ जगह वे अत्याधुनिक हैं तो वहीँ धार्मिक आस्थाओं से भी बंधे हुए है. नायक में वह सब खासियत है जो हम सब में है या कहें वही सब कमियां है जो हम सब में है अर्थात नायक कोई सुपर हीरो न होकर एक सामान्य व्यक्ति है जो अरबपति होते हुए भी कुल्हड़ में चाय पी सकता है या ऑटो में घूम सकता है , साधारण से कैंटीन में बैठ कर पिज़्ज़ा खा सकता है असफल होने पर टूटता है रोता भी है .बहुत सफल होकर भी असफल होता है बुलंदियों पर भी है किन्तु अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है पुनः जूझता है संघर्ष करता है इस सफलता और असफलता के बीच कहीं न कहीं खुद को ढूँढने की कोशिश भी है और खुद को समझने के इरादे भी .
एक बात और , कहानी के लिए , बनारस आज कल के लेखकों का पसंदीदा शहर बन गया है वहाँ की कुछ खास जगहें जैसे की अस्सी घाट , मणिकर्णिका आदि यहाँ आकर जीवन के कटु सत्य से सामना होता है , खुद के भीतर के सच को देख पाने की ललक खुद को पहचानने की उत्कंठा है वही गंगा आरती , घाट के अद्भुत नज़ारे और कुल्हड़ वाली चाय ।
इस पुस्तक की विशेषता रही कठिन हिंदी को छोड़ कर सहज सरल आम आदमी को समझ आने वाली भाषा में रचना लिखना जो की कथानक एवं उसकी अंतरात्मा से पाठक को जोड़ने में कामयाब होने का मूल मंत्र है , क्यूंकि क्लिष्टता या उलझाव सिर्फ दूरी बनाता है जबकि सरलता और स्पष्टता नजदीकियां , फिर बात चाहे कथानक की हो अथवा वास्तविक जीएवन की.
कथानक में सब कुछ इत्मिनान से चल रहा है न प्यार की ज़ल्दी है न जीने की . कोई भागमभाग नहीं. सुकून की तलाश सुकून से ज़ारी है …
कथानक को जैसा मैंने समझा प्रस्तुत है
समीक्षा के रूप में
शेष आप पर छोड़ता हूँ, पढ़ें और निर्णय लें किन्तु पढ़ें ज़रूर
सादर,
अतुल्य
11 फरवरी २०२३