सबरी के राम

सबरी राह देख रही है,

रघुवीर मेरे कब आयेंगे ।

नैन मेरे अति व्याकुल है,

कब इनकी सुधा मिटाएंगे ।।

पथ से कंटक नित्य हटाती है

और पुष्पों से उसे सजाती है ।

राम राम वो सदा ही गाती,

श्री चरणों में ध्यान लगाती है ।।

वो सुध बुध सब बिसरती है,

प्रेम में ऐसे मग्न हो जाती है ।

ऐसी प्रीत तो भगवान को,

भक्तों तक खींच के लाती है ।।

गौर श्याम वर्ण दो भ्राता,

जटा जूट है अति सुंदर भाता ।

जिनकी चाह थी सदियों से,

उनको ह्रदय पहचान जाता ।।

नैनो से नीर बहाती सबरी,

आसन पर है बिठाती सबरी ।

कुटिया में कुछ खाने को नहीं,

तब बेरों को खिलाती सबरी ।।

चख चख के चुनती जाती है

मीठे मीठे रखती जाती है ।

खट्टे बेर मिले न प्रभु को,

मन में अपने सकुचाती है ।।

सबरी बेर खिलाती जाती है,

भगवान बड़े प्रेम से खाते है ।

लक्ष्मण तुम भी खा कर देखो,

लक्ष्मण तब एक बेर उठाते हैं ।।

खाऊं कैसे मैं इन बेरों को,

मुझे सब झूठे नजर आते हैं ।

नजर बचा कर रघुनंदन की,

लखन बेर फेंकते जाते है ।।

जो घट_घट के वासी है,

वो तो सब जान जाते है ।

शक्ति लगी जब लक्ष्मण के,

वो बेर ही प्राण बचाते है ।।

ऋषि मुनि संतों को जिनके,

दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं ।

वो दया सिंधु, सुखधाम, राम,

मां शबरी के घर आते हैं।।

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रचनाकार

Author

  • अनूप अंबर

    नाम : अनूप अंबर जन्म तिथि:01जनवरी 1991 पिता का नाम:राजेश कुमार पता: फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेशइनके नौ साझा संकलन प्रकाशित हो चुके हैं, पच्चीस अर्थलोगी प्रकाशित हो चुकी है, विभिन्न मंचों से 150 से अधिक सम्मान पत्र प्राप्त है, इनकी विभिन्न रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है,ये कई साहित्य पटलों पर सक्रिय है ।। Copyright@अनूप अंबर / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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