अब न रहना मुझे कैद होकर
अब परिंदों की जैसे उडू मै
ना सिमट जाऊं मैं पिजड़े में ही
उड़ान अब आसमां तक भरू मै
चीज जितनी निराली जगत में
उसका रसपान हरदम करूं मैं
जो बिखेरे हैं खुशबू पवन ने
ऐसी वादी में ही सांस लूं मैं
जो बिखेरे जगत भर में खुशियां
प्रेम ऐसे प्रदर्शित करूं मैं
फैले खुशियां ही खुशियां जगत में
ऐसी हरदम कली सी खिलू मै
हो मनोरम सी पावन ये धरती
चांदनी बनकर शीतल करूं मैं
प्रेम की ही फसल लहलहाए
अंकुरित बीज ऐसे बनू मै
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