सिंह आदि मांसाहारी को,
करना हैं पड़ता , संघर्ष अगर ।
तो प्राण रक्षा हेतु भागते,
मृग आदि शाकाहारी डरकर।।
मृग आदि शाकाहारी को ,
भोजन तो मिलता सरलता से ।
किन्तु है बचाना पड़ता जीवन,
इन मांसाहारी से विरलता से ।।
वनराज तो है शक्तिशाली ,
इसे किसी का गम नहीं ।
पर संघर्ष भोजन के लिए,
इसका किसी से कम नहीं ।।
निराहार रह जाएगा बेचारा,
गर करेगा संघर्ष नहीं ।
तो कौन कहता है कि जीवन,
मृगपति का मृग से कठिन नहीं ।।
कुरंग पे तो भोजन उतना,
खूब खाता चाव से ।
लेकिन डरा हुआ जीवन इतना,
देखे जहां – तहां भय भाव से ।।
संघर्ष है दोनो के जीवन में,
किसी का किसी से कम नहीं ।
संघर्ष है जीवन ,जीवन ही संघर्ष,
दोनो ही है एक, पृथक नहीं ।।
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