कनक कटोरी कर्ण कर्णफूल किंकिणि सुनि, कोटि-कोटि काम कूदि कूदि चलि आवत है।
खन-खन-खनकार खंजनिका के कंगन करें, सृष्टि में संगीत की सुर सरिता बहावत है।
गजरा के गुण गुणीजन गुणगान करें, गंधवान मधुमास इत्र प्रसरावत है।
घहरि घहरि घनकेश घुमड़े कपाल उपर, दांतन से रूपशिखा दामिनि दमकाकावत है।।
चतुर चंचला चितचोरिका की चपल चाल, चेतन अचेतन सब झूमि झूमि जात है।
छम-छम-छम छागलन की छनक छनकारी बहु, सूर्य चंद्र छहों ऋतु अतिहर्षात है।
जनम-जनम के जप तप जब जागि गये, जगत जयिका के तब दरशन होइ जात है।
झुमकी झमकावत झुठलावत रम्भा मेनका के झनकार नूपूर से मोद बढ़ि जात है।।
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टिमटिमात तारा जस टिकुली टसक टेढ़, टकटकी लगाये रसिक दिन अरु रात है।
ठुमकी ठुमकि-ठुमकि जात जब बोलत बैन,ठाट बाट स्वप्निका के बहुत इ सोहात है।
डहकावति डगरन से चाहे केतनौ यती होय, डुबकी लगावत नैन सिंधु में समात है।
ढुलकावति ढरकी से ढरकि ढरकि सोमरस, शेष ज्ञान दीप से जगत विलसात है।।