जगजननी माँ पार्वती, शिव देखें अनिमेष।
पावन परिणय हो गया, अद्भुत और विशेष।।
भूत-प्रेत मिल साथ में, चले सभी बारात।
मनभावन लगने लगी, त्रयोदशी की रात।।
वरमाला ले हाथ में, सकुचाती अति मात।
अमिय पुष्प उर खिल उठे, ज्यों सुंदर जलजात।।
बाएँ अंग विराजतीं, मुखमण्डल मुस्कान।
शोभित होते साथ में, नीलकण्ठ भगवान।।
शिवरात्रि का पर्व है, पावन और महान।
शिव पूजन से ही मिले, मनवांछित वरदान।।
शिवम विश्व की चेतना, माता शक्ति समान।
करें कृपा हर भक्त पर, तनिक नहीं अभिमान।।
आदिशक्ति माँ हिमसुता, शिव को रहीं निहार।
देव पुष्प वर्षा करें, करके जय-जयकार।।
महादेव गण साथ में, करते सदा निवास।
उल्लासित भजते सभी, उनको बारह मास।।
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