व्याकुल है ये जमाना

कुछ पल तो साथ जी लो सबको अकेले जाना
साथ जब भी छूटा तो फिर कहां से पाना

यादों की जमी पर ही रह जाओगे सिमटकर
ये आने जाने का तो है सिलसिला पुराना
जीता है जब तलक तू बस स्वार्थ में ही डूबा
ना गैर की खबर ली ना भाव में ही डूबा
कुछ सोच मन से सब के दिल में जगह बनाना
न जमीन ये रहेगी न तेरा कोई ठिकाना
सब भूल गिले शिकवे सबको गले लगाना
रिश्तो की खुशबू दिल में हरदम ही तुम बसाना
कुछ पल तो&

दुनिया ये देखती है क्या कर्म है तुम्हारा

भावो में कितने डूबे एहसास

क्या तुम्हारा फैलाई कितनी खुशियां

कितने है गम दिए तू बनेगा रस

ये जीवन का कर्म ही तुम्हारा हंस

करके बिताओ यहां तुम जिंदगी

अपनी कर्मों को देख तेरे प्रेरित हो ये जमाना कुछ पल तो
सीढी उमर की सबकी हर पल ही घट रही है
ये रोज ही नए इक डगर पे चल रही है
ये जिस्म जिंदगी की हर घूंट पी रही है
फिर भी न सबके जीवन की प्यास बुझ रही है
सब अपने में ही खोए ना साथ अब किसी का
लगता है आज मुझको अकेला है ये जमाना
कुछ पल तो _

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रचनाकार

Author

  • गिरिराज पांडे

    गिरिराज पांडे पुत्र श्री केशव दत्त पांडे एवं स्वर्गीय श्रीमती निर्मला पांडे ग्राम वीर मऊ पोस्ट पाइक नगर जिला प्रतापगढ़ जन्म तिथि 31 मई 1977 योग्यता परास्नातक हिंदी साहित्य एमडीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही कालूराम इंटर कॉलेज शीतला गंज से ग्रहण की परास्नातक करने के बाद गांव में ही पिता जी की सेवा करते हुए पत्नी अनुपमा पुत्री सौम्या पुत्र सास्वत के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन करते हुए व्यवसाय कर रहे हैं Copyright@गिरिराज पांडे/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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