वो कितने कठिन दौर थे

मोड़ पर हम तुम्हारे तू मेरे खड़े
एक कदम तुम बढे एक कदम हम बढे
पर न जाने ये दिल फिर से क्या कह गया
ये कदम थे जहां पर वही थे खड़े
होश कुछ ना रहा ना किसी की फिकर
ना थी अपनी ही ना थी किसी की खबर
भावों में मैं भी डूबा था डूबी थी तू
खोए दोनों ही थे अपनी सुध बुध खड़े
भाव में डूबकर सिसकियां कह रही
याद आती तेरी हिचकियां कह रही
पास होकर भी हम कितने मजबूर थे
तुम वहीं पर खड़े हम यहीं पर खड़े
जाके डूबे थे दोनों उसी झील में
उठके लहरें भी दिल में ठहर सी गई
होठ पर एक कंपन हुआ था मगर
मैं खडा मौन था मौन तुम थे खड़े
मौन रहना भी दिल प्रेम आगाज है
प्रेम में डूबे भावो की आवाज है
दिल पुकारा था मेरा तुम्हारा भी पर
होश खोता जमाना न कुछ सुन सके
क्या कहेगा जमाना हमें देखकर
डूबकर भाव में सोचते ही रहे
ढक ये लेगा मुझे प्रेम अंबर सदा
प्रेम में डूब अंबर के नीचे खड़े
पर न जाने वो कितने कठिन दौर थे
हम यहीं पर खड़े तुम वहीं पर खड़े

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रचनाकार

Author

  • डॉ दिवाकर चौधरी

    कल्याणी प्रतिभा हो मेरी, मधुर वर्ण-विन्यास न केवल||Copyright@डॉ दिवाकर चौधरी इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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