इस क़दर टूटे मरासिम वक़्त तनहा रह गया ।
मुस्कराहट जा चुकी है ज़ख़्म गहरा रह गया ।
यूँ तेरी तस्वीर रक्खी है ज़हन में आज तक ।
ज्यों शहादत बाद घर में एक तमग़ा रह गया ।
क्या क़यामत है कि मंज़िल बह गयी सैलाब में ।
धूल यादों की उड़ाता एक रस्ता रह गया ।
पिस गया इन्सान फिर से मज़हबों के दरम्यां ।
पंख गुम्बद पर सुखाता इक परिन्दा रह गया ।
हो गए तारे इकठ्ठे रौशनी के जश्न में ।
मैं गगन का चाँद हूँ मैं फिर अकेला रह गया ।
वक़्ते आख़िर प्यास की ये इन्तहा बाक़ी रही ।
मेरी पलकों पर तरसता एक क़तरा रह गया ।
जा चुका बेटा बड़ा हो कर कहीं परदेस को ।
झूलता बाँहों में मेरी इक खिलौना रह गया ।
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